श्लोक १३-०५

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
अहो बत विचित्राणि चरितानि महात्मनाम् ।
लक्ष्मीं तृणाय मन्यन्ते तद्भारेण नमन्ति च ॥ ॥१३-०५॥
अहो, महात्माओं के चरित्र कितने विचित्र होते हैं। वे लक्ष्मी को तृण अर्थात् बहुत कम मूल्यवान समझते हैं, और जो भार वहन करते हैं, उसके सामने वे नतमस्तक हो जाते हैं।

चरित्र की विविधता और महानता को समझना एक गूढ़ विषय है। किसी महात्मा का चरित्र केवल सामान्य मान्यताओं या समाज के सतही दृष्टिकोण से नहीं आंका जा सकता। उनके विचार, आचरण और मूल्यों में गहरी भिन्नता होती है, जो सामान्य लोगों के लिए विचित्र या असामान्य प्रतीत हो सकती है। यह विचित्रता केवल अनियमितता नहीं, बल्कि उच्चतर विवेक और गहन अनुभूति का परिणाम होती है।

महात्मा लक्ष्मी को तृण की भांति समझते हैं अर्थात् वे धन-संपत्ति को अत्यंत महत्व नहीं देते। यह धन के प्रति त्याग, वैराग्य, और भौतिक वस्तुओं से ऊपर उठने का सूचक है। धन को कमतर आंकना और उसकी माया से मुक्त होना महात्माओं की विशेषता है, जो उन्हें सांसारिक मोह से अलग करता है।

दूसरी ओर, महात्मा उन भारों या जिम्मेदारियों के प्रति नतमस्तक होते हैं जो वे ग्रहण करते हैं। यह केवल बाहरी बोझ नहीं, बल्कि जीवन के कर्म, सामाजिक दायित्व, और आत्मिक साधना के बोझ हैं। भार को स्वीकार करना और उसके सामने श्रद्धा व्यक्त करना, आत्मा की महानता और परिपक्वता का संकेत है।

यह दृष्टिकोण एक विपरीत मूल्य व्यवस्था को दर्शाता है जहाँ सामान्य रूप से धन और भौतिक सुख को सर्वोपरि माना जाता है, वहाँ महात्मा उसका तिरस्कार करते हैं और जीवन की सच्ची समृद्धि को कर्तव्य और धर्म पालन में देखते हैं। ऐसे चरित्र में तृष्णा, अहंकार और लोभ के लिए कोई स्थान नहीं होता, बल्कि वे समर्पण, संयम, और आत्मज्ञान के माध्यम से अपने जीवन को संचालित करते हैं।

इस विचारधारा से यह सवाल उठता है कि क्या असली समृद्धि और सौभाग्य केवल धन-संपदा में निहित है? या फिर वह समृद्धि जो मानसिक, आध्यात्मिक, और सामाजिक भारों को स्वीकारने में निहित है, जो असली लक्ष्मी है? भार के सामने नमन करने का भाव यह दर्शाता है कि महात्मा जीवन के दायित्वों को सम्मान और गरिमा के साथ स्वीकारते हैं, जो उनकी महानता का परिचायक है।

इस प्रकार, चरित्र की विचित्रता में छुपा है गहरा संदेश कि असली महानता धन को तृण मानने और जीवन के कठिनतम भारों के प्रति विनम्रता रखने में है। यह मूल्य व्यवस्था साधारण सोच से उलट है, जो अक्सर महात्मा के चरित्र को समझने में विफल रहती है।