वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः ॥ ॥१३-०२॥
दुःख और चिंता का समय-बद्ध विश्लेषण अत्यंत आवश्यक है। बीते हुए दुःखों को बार-बार स्मरण करके मानसिक उलझनों और नकारात्मकता में डूबना व्यर्थ और हानिकारक होता है। यह मानसिक अवस्था कर्मों को बाधित करती है और मानसिक उन्नति को रोकती है। यदि पुरानी पीड़ा में खोए रहें तो वर्तमान का सही उपयोग संभव नहीं।
भविष्य की चिंता भी मूर्खता के समान है क्योंकि वह अनिश्चित और अप्रत्याशित होती है। भविष्य की घटनाएँ अनेक कारणों से परिवर्तित हो सकती हैं और उनका पूर्वानुमान लगभग असंभव है। अतः भविष्य को लेकर निरंतर चिन्ता मनुष्य को मानसिक तनाव और भय के गर्त में धकेलती है, जो निर्णय क्षमता को भी प्रभावित करती है।
विचक्षणता का लक्षण है वर्तमान समय में पूर्ण रूप से उपस्थित रहना और उसी के अनुसार समुचित क्रियाएँ करना। वर्तमान समय को समझना और उसी के अनुरूप व्यवहार करना जीवन की प्रगति के लिए अनिवार्य है। यह दृष्टिकोण समय के साथ चलने और परिस्थिति के अनुसार उचित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
वर्तमान में कर्म करना जीवन का सार है क्योंकि वही अनुभूत और नियंत्रित किया जा सकता है। बीते हुए को बदला नहीं जा सकता और भविष्य अभी नहीं आया है, इसलिए उनका बोझ वर्तमान पर डालना विवेकहीनता है। इस मानसिकता से उभरना ही बुद्धिमत्ता है।
अंततः, यह सिद्धांत मनुष्य को मानसिक स्थिरता, निर्णय क्षमता और प्रगतिशीलता प्रदान करता है। शोक और चिंता के बंदी बने बिना, वर्तमान समय की आवश्यकताओं और अवसरों को समझ कर उनका सदुपयोग करना जीवन के सफल और संतुलित प्रवाह का आधार है।