श्लोक १३-१६

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
अनवस्थितकार्यस्य न जने न वने सुखम् ।
जनो दहति संसर्गाद्वनं संगविवर्जनात् ॥ १३-१६
जिसका कार्य करने में कोई निश्चितता नहीं है, उसे न तो लोगों के बीच सुख मिलता है और न ही वन में। लोगों के संपर्क से वह जलता है, और वन में अकेलेपन से भी वह जलता है।

व्यक्ति की मानसिक स्थिति और कार्यशैली उसके जीवन के सुख-दुःख में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब किसी का कार्य करने का तरीका अव्यवस्थित होता है, तो न तो वह समाज में सुखी रह सकता है और न ही एकांत में। समाज में रहते हुए उसके अव्यवस्थित कार्यों के कारण वह मानसिक तनाव का शिकार होता है, जबकि वन में अकेलेपन के कारण वह और अधिक मानसिक पीड़ा महसूस करता है।

इस स्थिति में, व्यक्ति की मानसिक अस्थिरता और कार्यों की अव्यवस्था उसके जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है। समाज में रहते हुए भी वह मानसिक शांति नहीं पा सकता, क्योंकि उसके कार्यों की अव्यवस्था उसे मानसिक रूप से जलाती है। वहीं, वन में अकेलेपन के कारण वह और अधिक मानसिक तनाव का सामना करता है।

यह स्थिति यह दर्शाती है कि मानसिक शांति और संतुलित कार्यशैली जीवन के सुख के लिए आवश्यक हैं। जब व्यक्ति अपने कार्यों को व्यवस्थित और संतुलित करता है, तो वह न केवल समाज में सुखी रहता है, बल्कि अकेलेपन में भी मानसिक शांति का अनुभव करता है।

इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि मानसिक शांति और कार्यों की व्यवस्थितता जीवन के सुख के लिए अनिवार्य हैं। अव्यवस्थित कार्यशैली न केवल समाज में, बल्कि अकेलेपन में भी मानसिक तनाव और पीड़ा का कारण बनती है।

अतः, जीवन में मानसिक शांति और कार्यों की व्यवस्थितता को प्राथमिकता देना चाहिए, ताकि समाज में और अकेलेपन में भी सुख और संतुलन बना रहे।