प्रीतिः साधुजने स्मयः खलजने विद्वज्जने चार्जवम् ।
शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धूर्तता
इत्थं ये पुरुषा कलासु कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः ॥ १२-०३॥
जीवन में विभिन्न संबंधों और व्यक्तियों के प्रति उचित और तदनुरूप व्यवहार ही सामाजिक स्थिरता और प्रतिष्ठा का मूलाधार होता है। हर व्यक्ति को यह समझना आवश्यक है कि सभी प्रकार के संबंध समान नहीं होते; स्वजन, परजन, दुर्जन, साधु, खल, विद्वान, शत्रु, गुरु, नारी — प्रत्येक वर्ग की प्रकृति और अपेक्षाएँ भिन्न हैं, अतः उनसे संवाद और व्यवहार भी भिन्न होना चाहिए।
दाक्षिण्य अर्थात् उपकार या सौजन्य का भाव स्वजनों के प्रति होना चाहिए, क्योंकि स्वजन ही सबसे अधिक स्नेह और सहयोग के पात्र होते हैं। परिजन के प्रति दया का भाव मानवता की पहचान है, जो परोपकार और करुणा से जुड़ा है। दुर्जन के प्रति सतर्क और चालाक रहना आवश्यक है; सदैव उनकी शाठ्यतापूर्ण प्रवृत्ति का मुकाबला चतुराई से किया जाना चाहिए।
साधुजन के प्रति प्रीति या प्रेम दिखाना, जो सदाचार और धार्मिकता के प्रतीक हैं, अपने आप में नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति का परिचायक है। खलजन के प्रति स्मय यानी हँस कर उनकी छली गई या कपटी प्रवृत्ति को सहन करना समझदारी है, क्योंकि उनके साथ सीधे टकराव में हानि संभव है। विद्वान के प्रति चार्जव, अर्थात् सत्य और सच्चाई के मार्ग पर चलना, ज्ञान और बुद्धि के सम्मान का प्रमाण है।
शत्रुजन के प्रति शौर्य अर्थात् साहस और निडरता आवश्यक है ताकि स्वयं की रक्षा और न्याय स्थापित किया जा सके। गुरुजन के प्रति क्षमा का भाव गुरु की महत्ता और उनके प्रति श्रद्धा को दर्शाता है। नारीजन के प्रति धूर्तता, यहाँ संदर्भित है बुद्धिमत्ता और चालाकी से, जो पारिवारिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए आवश्यक हो सकती है।
इस प्रकार विभिन्न वर्गों के अनुसार इन गुणों और कलाओं में दक्षता ही व्यक्ति को सामाजिक प्रतिष्ठा और लोक में स्थिरता प्रदान करती है। यह व्यवहारिक नीति न केवल पारिवारिक और सामाजिक जीवन में सफलता की कुंजी है, बल्कि राजनीतिक और नैतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हर संबंध और परिस्थिति के लिए उपयुक्त प्रतिक्रिया और गुणों का चयन ही मनुष्य को स्थायी सम्मान और प्रभावशाली स्थिति प्रदान करता है।
विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या एक समान नीति से सभी प्रकार के संबंधों का संचालन संभव है? क्या प्रत्येक वर्ग की प्रवृत्तियों को समझकर उसके अनुसार व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए? यही कला जीवन के विविध रंगों को समझने और समाज में स्थायी आधार बनाने की कुंजी है।