सम्पक्वमपि माधुर्यं नोपयातीन्द्रवारुणम् ॥ ॥१२-२३॥
यह श्लोक मनुष्य के चरित्र के स्थायित्व और परिवर्तनशीलता पर एक गहन विचार प्रस्तुत करता है। आयु वृद्धि एवं बाह्य परिपक्वता के बावजूद, यदि व्यक्ति का स्वभाव दुष्ट और पापी रहा हो, तो वह अंततः अपनी प्रवृत्ति से विमुख नहीं होता। 'खलः' शब्द दुष्ट, कपटी, या दुराचारी व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हुआ है, जो न केवल आचार में भ्रष्ट होता है, बल्कि नैतिक और सामाजिक नियमों का उल्लंघन भी करता है। यहां आयु वृद्धि ('वयसः परिणामे') के सन्दर्भ में यह इंगित किया गया है कि उम्र बढ़ने से स्वभाव में स्वाभाविक परिवर्तन की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, यदि वह स्वभाव मूलत: दुष्ट हो।
दूसरे पद में 'सम्पक्वमपि माधुर्यं नोपयातीन्द्रवारुणम्' का रूपकात्मक प्रयोग हुआ है, जिसमें इंद्र और वरुण जैसे दो परस्पर विरोधी देवताओं के बीच मधुरता न होने का उदाहरण दिया गया है। यह रूपक स्पष्ट करता है कि दुष्ट स्वभाव वाले व्यक्ति में सदाचार या सौम्यता का विकास नहीं होता, ठीक वैसे ही जैसे इंद्र (वज्रधारी) और वरुण (जल के अधिपति) के बीच सौहार्द या मधुरता सम्भव नहीं।
इस प्रकार, श्लोक व्यक्ति के आचरण के स्थायित्व की अवधारणा को उद्घाटित करता है, जहां स्वाभाविक प्रवृत्ति आयु या अन्य बाह्य कारकों से स्वतः परिवर्तित नहीं होती। चरित्र का आधारभूत गुण यदि खल हो, तो वह अंत तक बना रहता है। यह मानव स्वभाव, नैतिकता, और दार्शनिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। चरित्र और स्वभाव की स्थायित्वता पर इस श्लोक के विमर्श में गहन शास्त्रीय तर्क और व्यवहारिक अनुभव निहित हैं, जो जीवन में स्थिरता, सुधार और नैतिक परिवर्तन की संभावनाओं पर चिंतन उत्पन्न करते हैं।
नैतिक शास्त्रों और व्यवहारिक मनोविज्ञान के अनुसार, स्वभावगत दोषों का निवारण केवल बाह्य आयु के साथ नहीं होता, बल्कि सम्यक् साधना, ज्ञान, श्रद्धा, और आचरण परिवर्तन से ही संभव है। श्लोक में प्रयुक्त रूपक एवं तुलना संवादात्मक शैली में श्लोक को अधिक प्रभावी बनाती है तथा दार्शनिक दृष्टिकोण से चरित्र और व्यवहार के स्थायित्व के विषय में चिंतन की गहराई प्रदान करती है।
इस प्रकार, यह श्लोक यह भी सूचित करता है कि परिवर्तन की संभावना हेतु स्वभाव की गहन समझ और उसके अनुरूप प्रयास आवश्यक हैं, केवल आयु या समय के प्रवाह से अपेक्षा रखना व्यर्थ है। यह मनुष्य के आंतरिक परिवर्तन और नैतिक विकास की गंभीरता को उजागर करता है, जो व्यक्तित्व निर्माण और सामाजिक सद्भाव के लिए अनिवार्य हैं।