श्लोक १२-२२

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ॥ १२-२२॥
जल की बूँदों के धीरे-धीरे गिरने से घड़ा भरता है। उसी प्रकार, सभी विद्याओं, धर्म और धन का कारण वह है।

यह विचार जीवन में छोटे-छोटे, निरंतर प्रयासों की महत्ता को दर्शाता है। जल की बूँदों के सतत् गिरने से ही एक खाली घड़ा भरता है, वैसा ही निरंतर और समुचित प्रयास से ही ज्ञान, धर्म और धन का संचय होता है। तत्काल परिणाम न दिखने पर निराश होने की प्रवृत्ति मानव स्वभाव में होती है, परंतु यह सतत् प्रयास ही अंततः पूर्णता और सफलता का आधार बनता है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि ज्ञान, धर्म, और धन के लिए कोई अल्पकालिक, त्वरित उपाय नहीं होता। हर एक का विकास क्रमशः, निरंतरता के साथ होता है। जल की एक-एक बूँद स्वयं में नगण्य हो सकती है, परन्तु उसकी सतत् आवक से घड़ा भरता है। ठीक इसी प्रकार, ज्ञान के सूक्ष्म अंश, धर्म के छोटे-छोटे कर्म, और धन के निरंतर संचय से ही अंततः व्यक्ति समृद्ध होता है।

यह सत्य है कि महान उपलब्धियाँ और जीवन की स्थिरता अचानक नहीं आती, बल्कि यह छोटे-छोटे प्रयासों का योग होती है। यदि व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति धैर्य और संयम से काम करता रहे, तो समय के साथ असीम उपलब्धि उसके कदम चूमती है। यह सतत् प्रयास मनुष्य को कर्म के मार्ग पर स्थित रखता है, जो न केवल बाह्य सफलता देता है, बल्कि आंतरिक शांति और संतुलन भी प्रदान करता है।

अन्यथा, त्वरित फल की चाह में किए गए अधूरे प्रयास और अधैर्य से प्राप्त चीजें अस्थायी होती हैं। ज्ञान का अंश-जोड़, धर्म के नियमों का पालन, और धन का संयमित संचय, सभी जीवन में स्थिरता के आधार हैं। यह दृष्टिकोण प्राचीन भारतीय दर्शन में कर्मयोग, तपस्या, और संयम के महत्व को रेखांकित करता है।

इसलिए, जीवन में स्थायित्व, समृद्धि और संतोष प्राप्त करने हेतु निरंतर, अनुशासित और धैर्यपूर्ण प्रयास की आवश्यकता है। जलबिन्दुओं की भांति छोटे प्रयास समय के साथ घड़े को भरते हैं, और एक स्थायी, पूर्ण और सफल जीवन की नींव रखते हैं।