श्लोक १२-१६

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
काष्ठं कल्पतरुः सुमेरुचलश्चिन्तामणिः प्रस्तरः
सूर्यास्तीव्रकरः शशी क्षयकरः क्षारो हि वारां निधिः ।
कामो नष्टतनुर्वलिर्दितिसुतो नित्यं पशुः कामगौ-
र्नैतांस्ते तुलयामि भो रघुपते कस्योपमा दीयते ॥१२-१६॥
लकड़ी कल्पतरु है, सुमेरु पर्वत चिंतामणि है, पत्थर है प्रस्तर, सूर्य है तीव्रता देने वाला, चंद्रमा है नष्ट करने वाला, क्षार है वर्षा का धन। काम है नष्ट देह वाला, बलि है दिती का पुत्र, पशु है कामगौर। हे रघुपति! मैं इन सबकी तुलना तुम्हारे साथ नहीं करता, क्योंकि तुम्हें किससे तुलना करनी है?

प्राकृतिक और दैवीय वस्तुओं तथा शक्तियों की इस सूची में उनके विशिष्ट गुणों और प्रभावों को दर्शाया गया है। काष्ठ (लकड़ी) कल्पतरु के समान है, जो इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने वाला अमूल्य वृक्ष है। सुमेरु पर्वत, जो स्थिरता और अपराजेयता का प्रतीक है, चिंतामणि (इच्छा पूरी करने वाला रत्न) के समान है, जो अनंत संभावनाओं और धन-वैभव का स्रोत माना जाता है। प्रस्तर (पत्थर) स्थायित्व और कठोरता का सूचक है।

सूर्य की तीव्रता से जीवन का संचार होता है, परन्तु वह तीव्रकर भी है, जो कभी-कभी विनाशकारी हो सकता है। चंद्रमा क्षयकार है, जो समय के साथ ह्रास और परिवर्तन का प्रतीक है। क्षार, जो वर्षा का धन है, जीवन के पुनरुत्थान और नष्टता दोनों के लिए आवश्यक है।

काम (कामना) नष्ट तनु (शरीर) वाला है, जो इच्छाओं और आसक्तियों के कारण व्यक्ति की ऊर्जा और जीवन शक्ति को कम करता है। बलि, दिती का पुत्र, बलिदान और त्याग का प्रतीक है, जो जीवन की अपरिहार्य हानि को दर्शाता है। पशु, यहाँ कामगौर के रूप में, कामुकता और भौतिक इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करता है, जो मनुष्य को पशु रूप में गिरा सकता है।

इस सूची के अंत में यह स्वीकार किया गया है कि इन सब वस्तुओं और अवधारणाओं की तुलना रघुपति (भगवान राम) से नहीं की जा सकती, क्योंकि उनकी महत्ता और विशिष्टता अतुलनीय है। यह तुलना उस श्रेष्ठता और दिव्यता को दर्शाती है जो किसी भी भौतिक या दैवीय तत्व से परे है। यह प्रश्न उठता है कि जब इतना कुछ तुलनीय है, तब उस अनंत और अद्वितीय के साथ तुलनात्मक आधार क्या हो सकता है?

यह विचार चेतावनी देता है कि भले ही हम वस्तुओं और अवधारणाओं को उनके गुणों से समझें, परन्तु अंततः कुछ तत्व ऐसी महत्ता रखते हैं जिनकी तुलना नहीं की जा सकती। इससे दार्शनिक रूप में यह भी समझ आता है कि वास्तविकता के विभिन्न स्तर होते हैं, और हर स्तर की अपनी सीमाएँ और क्षमताएँ हैं। इसलिए, श्रेष्ठता, दिव्यता और पूर्णता का माप भौतिक दुनिया के सामान्य मानकों से संभव नहीं।