श्लोक १२-१५

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
धर्मे तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहता
मित्रेऽवञ्चकता गुरौ विनयता चित्तेऽतिमभीरता ।
आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञानता
रूपे सुन्दरता शिवे भजनता त्वय्यस्ति भो राघव ॥ ॥१२-१५॥
धर्म में लगन, मुख पर मिठास, दान में उत्साह, मित्र के प्रति छल-कपट, गुरु के प्रति विनय, हृदय में अत्यधिक भीमिता, आचरण में शुद्धता, गुणों में रसिकता, शास्त्रों में विज्ञान, रूप में सुंदरता, और शिव की भक्ति में लीन होना, ये सब तुझमें विद्यमान हैं हे राघव।

व्यक्ति के चरित्र और आचरण की जटिल परतों का सम्यक् आकलन तभी संभव है जब उसके विभिन्न पक्षों को विश्लेषित किया जाए। धर्म के प्रति तत्परता केवल एक नैतिक गुण नहीं, बल्कि जीवन के कर्मों में स्थिरता और दृढ़ता का परिचायक है। मुख की मधुरता सामाजिक संबंधों में सौहार्द्र और मनोविनोद को बढ़ाती है, जो जीवन की जटिलताओं में सामंजस्य स्थापित करती है। दान में उत्साह उस उदारता को दर्शाता है, जो स्वार्थ से परे होकर दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित होती है।

मित्र के प्रति छल-कपट का उल्लेख इस बात की ओर संकेत करता है कि जीवन में यथार्थवाद भी आवश्यक है; न केवल अंधविश्वास या एकरसता, बल्कि सचेतन और विवेकपूर्ण व्यवहार। गुरु के प्रति विनय सम्मान और अनुशासन का आधार है, जो ज्ञानार्जन के लिए आवश्यक होता है। हृदय में भीमिता का होना मनोबल और साहस का परिचायक है, जो संकटों और विरोधों के बीच दृढ़ता प्रदान करता है।

आचरण में शुद्धता सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन की नींव है। गुणों में रसिकता उस सूक्ष्म समझ और संवेदनशीलता को दर्शाती है जो व्यक्ति को न केवल सतही ज्ञान, बल्कि जीवन की गूढ़ताओं का अनुभव भी कराती है। शास्त्रों में विज्ञान, अर्थात् गहन ज्ञान और विवेक, निर्णय लेने में सहायता करता है।

रूप की सुंदरता बाहरी आकर्षण का प्रतीक है, लेकिन इसके साथ शिव की भक्ति में लीन होना आध्यात्मिक समर्पण और उच्चतम आदर्शों की प्राप्ति का सूचक है। यह समन्वय मनुष्य को केवल भौतिक या मानसिक स्तर तक सीमित नहीं रखता, बल्कि उसे आध्यात्मिक और नैतिक परिपक्वता की ओर ले जाता है।

इस संयोजन में प्रत्येक गुण एक-दूसरे को संतुलित करता है, कहीं भी अत्यधिकता या अभाव नहीं देता। इस प्रकार का व्यक्तित्व न केवल सामाजिक रूप से सम्मानित होता है, बल्कि अपने अंतर्मन और चरित्र के माध्यम से भी प्रेरणा का स्रोत बनता है। जीवन के विविध आयामों में यह संतुलन ही स्थायित्व और सफलता का मूलाधार है।