न वेदशास्त्रध्वनिगर्जितानि ।
स्वाहास्वधाकारविवर्जितानि
श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि ॥ ॥१२-१०॥
किसी भी गृहस्थ जीवन की गरिमा केवल उसकी भौतिक संपन्नता या स्थापत्य पर नहीं टिकी होती, बल्कि उस घर की आत्मा उस वातावरण में निहित होती है जो ज्ञान, परंपरा, और आध्यात्मिक चेतना से अनुप्राणित हो। जिस घर में न तो सत्संग होता है, न शास्त्रपाठ की गूंज, और न ही श्रद्धा से युक्त यज्ञ-हवन अथवा तर्पण की ध्वनियाँ—वह भौतिक रूप से जीवित होते हुए भी आध्यात्मिक दृष्टि से मृतप्राय है।
जब किसी गृह में ब्राह्मणों का चरणोदक नहीं, अर्थात उनके चरणों का स्पर्श और सत्संग का पवित्र प्रभाव नहीं होता, तो वह स्थान शुद्धि से रहित रहता है। ब्राह्मण का आगमन केवल एक सामाजिक या धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि ज्ञान, धर्म और वैदिक संस्कृति की उपस्थिति का प्रतीक है। उसी प्रकार वेदों और शास्त्रों की ध्वनि किसी भी गृह को चेतना प्रदान करती है—वह केवल पाठ नहीं, बल्कि चेतना का कंपन है जो उस स्थान को जीवंत करता है।
जहाँ 'स्वाहा' और 'स्वधा' की ध्वनि नहीं होती—अर्थात न यज्ञ, न तर्पण, न पितृश्रद्धा—वहाँ पूर्वजों से संपर्क की कड़ी टूट जाती है। यह केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही आस्था और उत्तरदायित्व की परंपरा है। इन सबके अभाव में गृह केवल ईंट-पत्थर का ढांचा बनकर रह जाता है, जिसमें न तो स्मृति की गंध होती है, न भविष्य की दिशा।
श्मशान केवल मृत्यु का प्रतीक नहीं, बल्कि वह स्थान है जहाँ शांति होती है पर जीवन नहीं। ऐसा ही एक घर भी हो सकता है—साफ़-सुथरा, भव्य, शांत—लेकिन निर्जीव। ऐसे घरों में न संस्कारों की गूँज होती है, न विचारों की उष्मा, और न ही किसी आंतरिक स्पंदन की अनुभूति। यह एक चेतावनी है उन गृहस्थों के लिए जो आधुनिकता के नाम पर परंपरा से कट चुके हैं और जिनके घर आत्मिक रूप से सूने हो चुके हैं।
जब घर में न धर्म की गूँज हो, न ज्ञान का सतत प्रवाह, न श्रद्धा से जुड़ी क्रियाएँ—तो वहाँ व्यक्ति केवल शरीर से रहता है, आत्मा से नहीं। ऐसे घर में न बच्चों को दिशा मिलती है, न वृद्धों को संतोष, और न ही आगंतुकों को शांति। उस जगह की ऊष्मा केवल भौतिक सुविधा पर निर्भर होती है, जो किसी भी संकट में वाष्पित हो सकती है।
एक जीवंत गृह वह है जहाँ शास्त्रों का पाठ होता है, ब्राह्मणों का आदर होता है, अग्निहोत्र और पितृकर्म होते हैं, और आस्था की निरंतर धारा बहती है। ऐसा गृह न केवल अपने निवासियों को ऊर्जा देता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सांस्कृतिक धरोहर बनता है। इसके विपरीत, जिन घरों से यह सब लुप्त हो गया हो, वे केवल भौतिक संरचना हैं—श्मशान के समान।