इच्छापूर्तिधनं स्वयोषिति रतिः स्वाज्ञापराः सेवकाः ।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे
साधोः संगमुपासते च सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः ॥ १२-०१॥
गृहस्थाश्रम का सुख और समृद्धि केवल भौतिक संपदा से नहीं, बल्कि उस वातावरण से भी निर्भर करती है जिसमें परिवार के सदस्य और सेवक मिलकर एक समरस और संस्कारित जीवन व्यतीत करते हैं। यहाँ घर को केवल चार दीवारी नहीं, बल्कि सुख, शांति, और सम्मान का केन्द्र माना गया है। सुखी घर की उत्पत्ति अच्छे पुत्रों से होती है, जो न केवल संतानत्व के लिए बल्कि परिवार के हित के लिए बुद्धिमान और विवेकी होते हैं।
पत्नी का स्वरूप और वाणी भी परिवार की समृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आकर्षक और प्रेमपूर्ण संवाद का वातावरण गृहस्थ जीवन को मधुरता प्रदान करता है। पत्नी की वाणी न केवल प्रिय होती है, बल्कि वह परिवार के सौंदर्य और सम्मान की अभिव्यक्ति भी है।
इच्छाओं की पूर्ति हेतु धन की उपलब्धता और उसका सही उपयोग भी आवश्यक है। धन तभी लाभकारी होता है जब वह परिवार के सुख, स्वावलंबन, और आत्मसंतोष के लिए लगाया जाए। स्वयंसुख की प्राप्ति, अर्थात् व्यक्ति का आत्मसंतोष और मन की शांति, गृहस्थ जीवन का महत्वपूर्ण आधार है। इसके बिना भौतिक धन का कोई महत्व नहीं।
आज्ञा पालन करने वाले सेवक गृहस्थ को व्यवस्था, सुरक्षा, और आराम देते हैं, जो जीवन को सुचारु बनाते हैं। अतिथि सत्कार और शिव पूजन से न केवल धार्मिकता की पूर्ति होती है, बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा और आंतरिक शांति भी मिलती है। नियमित पूजा और सत्कार मनुष्य के मन को निर्मल बनाते हैं, जिससे परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
मिष्टान्न और पान का सेवन, जो कि स्वादिष्ट और पोषक हो, परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य और आनंद का प्रतीक है। भोजन केवल भक्षण नहीं, बल्कि संस्कार और प्रेम की अभिव्यक्ति भी है।
साधु संगति का सतत् होना गृहस्थ आश्रम के लिए अत्यंत पुण्यकारी और धन्यकारी माना गया है। साधु-संगति मन को शुद्ध करती है, जीवन में नैतिकता और आध्यात्मिकता लाती है, जो गृहस्थ जीवन को मात्र सांसारिक सुख से ऊपर उठाकर एक उन्नत और संतुलित जीवन बनाती है। साधुओं के साथ संवाद और मिलन गृहस्थ की दृष्टि को व्यापक करता है और उसे जीवन के उच्चतम उद्देश्य की ओर प्रेरित करता है।