दीपे प्रज्वलिते प्रणश्यति तमः किं दीपमात्रं तमः ।
वज्रेणापि हताः पतन्ति गिरयः किं वज्रमात्रं नगा-
स्तेजो यस्य विराजते स बलवान्स्थूलेषु कः प्रत्ययः ॥ ॥११॥
यह विचार शक्ति, प्रभाव और नियंत्रण के असली आधार को समझने की गहन विवेचना है। बाहरी रूप और आकार कभी भी वास्तविक शक्ति या नियंत्रण का मापक नहीं हो सकते। हाथी जितना बड़ा और स्थूल शरीर वाला हो, यदि उसका नियंत्रण केवल उसके आकार के अनुसार सीमित हो, तो वह कितनी शक्ति का धनी हो सकता है? केवल आकार से अधिकार और प्रभाव की कल्पना करना सतही सोच है।
दीपक और अंधकार का उदाहरण बताता है कि केवल प्रकाश की मात्रा से अंधकार के नष्ट होने का पैमाना नहीं तय होता। एक छोटी सी दीपक की लौ भी अंधकार को दूर कर सकती है, यह दर्शाता है कि वास्तविक शक्ति और प्रभाव का मापन मात्र बाह्य स्वरूप या मात्रा से नहीं किया जा सकता।
वज्र से मारे गए पत्थर का उदाहरण इस तर्क को और मजबूत करता है कि वज्र की शक्ति ही नहीं, बल्कि वह जो उसे नियंत्रित करता है, उसकी तेजस्विता और नियंत्रण शक्ति असली बल है। स्थूल और भौतिक ताकत की तुलना में उस नियंत्रण और तेजस्विता का महत्व कहीं अधिक है जो परिणामों को निर्धारित करती है।
यह दर्शन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि शक्ति की वास्तविक परिभाषा क्या हो सकती है? क्या केवल भौतिक ताकत? या वह बुद्धि, विवेक, और प्रभावशाली नियंत्रण जो स्थूल से परे है? असली बल तो उस तेजस्वी शक्ति में है जो आकार या वस्तु से परे जाकर प्रभाव डालती है। इसका यह भी अर्थ निकाला जा सकता है कि स्थूल, बाहरी या भौतिक तत्वों में विश्वास करना सीमित दृष्टिकोण है और वास्तविक शक्ति की खोज में यह मूर्खता है।
अतः इस विचार में स्पष्ट है कि वास्तविक प्रभाव, नियंत्रण और शक्ति आकार, वस्तु या मात्रात्मक आधारों से नहीं, बल्कि तेजस्विता, बुद्धिमत्ता और नियंत्रण की गहराई से परिभाषित होती है। यही दर्शन जीवन, राजनीति, और प्रबंधन के क्षेत्र में सटीक निर्णय लेने की प्रेरणा देता है।