उच्छेदने निराशङ्कः स विप्रो म्लेच्छ उच्यते ॥ ११-१६॥
धर्म और नीति की दृष्टि से न केवल मनुष्य के आचरण, बल्कि उसके कर्मों के उद्देश्य और प्रभाव को भी समझना अत्यंत आवश्यक है। जलाशय, कुएं, तालाब, बाग, पर्वत और निवास स्थान जैसे प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों का संरक्षण समाज के समग्र कल्याण के लिए अनिवार्य है। यदि कोई व्यक्ति इनका नाश करने में संकोच या आशंका नहीं करता, तो वह न केवल सामाजिक नियमों का उल्लंघन करता है बल्कि मानवीय मूल्य और प्रकृति के साथ एक घोर अन्याय भी करता है।
ऐसे व्यक्ति का व्यवहार निस्संदेह अपराधिक और अनैतिक है। उसे ‘विप्रो’ अर्थात् ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ब्राह्मणत्व का आधार केवल जन्म नहीं, बल्कि धार्मिक, नैतिक और सामाजिक दायित्वों का पालन भी है। जो व्यक्ति इन मूलभूत संस्कारों और दायित्वों का उल्लंघन करता है, उसे म्लेच्छ अर्थात् सामाजिक और धार्मिक रूप से अपवित्र माना जाता है।
यह वर्गीकरण दिखाता है कि आचरण की शुद्धता और सामाजिक सद्भावना में संसाधनों का संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है। जल, भूमि और आवासीय संरचनाएँ केवल भौतिक वस्तुएँ नहीं, बल्कि जीवन के आधार और सामाजिक स्थिरता के स्तंभ हैं। उनका विनाश न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए हानिकारक है, बल्कि भविष्य के लिए भी भारी अभिशाप सिद्ध होता है।
निराशंका विनाश से बचने का तात्पर्य है कि व्यक्ति को न केवल अपने कर्मों के दुष्परिणामों का भान होना चाहिए, बल्कि उनमें नैतिक संकोच भी होना चाहिए। संकोच और भय ही नैतिकता की प्रथम कड़ी है, जो अनैतिक कृत्यों से रोकती है। जब यह संकोच समाप्त हो जाता है, तब समाज की नींव हिल जाती है। ऐसे व्यक्ति का सामाजिक स्थान गिरता है, और वह अपने आप में एक प्रकार का विध्वंसक बन जाता है।
यह स्थिति सोचने पर मजबूर करती है कि क्या जन्म मात्र किसी को उच्च दर्जा दे सकता है? यदि कर्म और आचार-विचार भ्रष्ट हों, तो जन्म की महत्ता क्या रह जाती है? इसीलिए संस्कार, विवेक और नैतिकता का पालन करना जन्म से भी अधिक आवश्यक माना गया है।
समाज का समुचित संचालन तभी संभव है जब प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों के परिणामों को समझते हुए, संसाधनों और पर्यावरण का संरक्षण करे। जल, भूमि, वृक्ष और आवासीय संरचनाओं का संरक्षण न केवल नैतिकता की कसौटी है, बल्कि यह सामाजिक दायित्वों का निर्वहन भी है। जो व्यक्ति इस समझ के बिना निराशंक होकर विनाश करता है, उसे न केवल सामाजिक दृष्टि से अपवित्र समझा जाता है, बल्कि उसका स्थान समाज में अलग और नीचा होता है।