श्लोक ११-१३

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
लौकिके कर्मणि रतः पशूनां परिपालकः ।
वाणिज्यकृषिकर्मा यः स विप्रो वैश्य उच्यते ॥ ११-१३॥
जो व्यक्ति सांसारिक कर्मों में लिप्त होकर पशुओं की देखभाल करता है और व्यापार तथा कृषि के कार्य करता है, वही ब्राह्मण और वैश्य कहलाता है।

संसार में कर्मों के विविध स्वरूप होते हैं, और व्यक्ति का सामाजिक तथा आर्थिक स्थान उसके कर्मों के प्रकार से निर्धारित होता है। सांसारिक कर्मों में रत होना अर्थात् सांसारिक जीवन की आवश्यकताओं के अनुसार कार्यों में संलग्न रहना मानव जीवन का अनिवार्य पक्ष है। पशुओं की परिपालना कृषि और व्यापार के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। यह कार्य न केवल जीविका का साधन है, बल्कि समाज की आर्थिक स्थिरता का आधार भी है।

जो व्यक्ति इन सांसारिक कृत्यों—पशुओं की देखभाल, कृषि कर्म और वाणिज्य में संलग्न रहता है, उसे सामाजिक वर्ग के दृष्टिकोण से ब्राह्मण और वैश्य के संयोजन के रूप में देखा जाता है। इसका अर्थ यह है कि ज्ञानात्मक और आर्थिक कृत्यों का समन्वय आवश्यक है। केवल ज्ञान होना या केवल आर्थिक गतिविधियों में संलग्न रहना, दोनों में सामंजस्य स्थापित करना जीवन की वास्तविकता है।

यह परिप्रेक्ष्य सामाजिक वर्गों की परम्परागत समझ को भी चुनौती देता है, जहाँ केवल जन्म या बाहरी पहचान के आधार पर वर्गों का निर्धारण किया जाता है। कर्म प्रधान वर्गीकरण अधिक व्यावहारिक और यथार्थपरक है। पशुओं की देखभाल करना, कृषि करना और व्यापार करना सभी प्रकार के जीवन में स्थिरता, सुरक्षा, और विकास के लिए आवश्यक हैं।

व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है, न कि मात्र जन्म या वंश से। इस कर्मप्रधान वर्गीकरण में, ज्ञान और आर्थिक कर्मों का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, क्योंकि ज्ञान बिना आर्थिक आधार टिक नहीं सकता, और आर्थिक कर्म बिना ज्ञान के दिशा और नियमहीन हो जाते हैं।

यह विचार वर्तमान सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं के लिए भी महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है—क्या वर्ग निर्धारण केवल जन्मजात होता है, या कर्मों और योग्यता के आधार पर होना चाहिए? कर्म प्रधान दृष्टिकोण व्यवहारिक और न्यायसंगत है, जो व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर मूल्यांकन करता है और सामाजिक गतिशीलता को भी संभव बनाता है।

अतः यह समझना आवश्यक है कि सांसारिक कर्मों में लिप्तता, पशुओं की परिपालना, कृषि और वाणिज्य, ये सभी कर्म समाज के आर्थिक ताने-बाने को बनाए रखने में आवश्यक भूमिका निभाते हैं, और जो व्यक्ति इन कार्यों को करता है वह समाज में ब्राह्मण और वैश्य के गुण दोनों का मिश्रण है।