श्लोक १०-०६

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
लुब्धानां याचकः शत्रुर्मूर्खानां बोधको रिपुः ।
जारस्त्रीणां पतिः शत्रुश्चौराणां चन्द्रमा रिपुः ॥ १०-०६॥
लोभी लोगों के लिए भिक्षुक शत्रु है, मूर्खों के लिए ज्ञान देने वाला शत्रु है। बूढ़ी स्त्रियों के लिए पति शत्रु है, और चोरों के लिए चंद्रमा शत्रु है।

लुब्धि का अर्थ है अतिप्रलोभित, अत्यधिक लालची। जब कोई अत्यधिक लालची हो जाता है, तब वह भिक्षुक (याचक) के समान हो जाता है, जो दूसरों से अनुरोध करके प्राप्त करता है। यह अनुरोध उस के हित में नहीं, बल्कि उसकी स्वार्थपरता और आत्मकेंद्रित व्यवहार का परिणाम होता है। इस प्रकार की लालसा न केवल सामाजिक सद्भाव को नष्ट करती है, बल्कि स्वयं व्यक्ति के लिए भी घातक होती है क्योंकि वह अपनी गरिमा खो देता है और दूसरों का शत्रु बन जाता है।

मूर्खों के लिए बोधक (ज्ञान देने वाला) शत्रु होता है क्योंकि वे शिक्षा या बुद्धिमत्ता को नकारते या स्वीकार नहीं करते। उनके लिए सत्य या ज्ञान कभी भी हितकारी नहीं होता; यह उन्हें उनकी मूर्खता और अहंकार में बाधा बनता है। इसलिए, जो उन्हें सच्चाई दिखाता है, वह उनका शत्रु बन जाता है। यह स्थिति उन लोगों के लिए दुखद है जो अपने विकास और सुधार के लिए आवश्यक ज्ञान से दूर रहते हैं और अपने अहंकार को बढ़ावा देते हैं।

जारस्त्रीणां पति: वृद्ध स्त्रियों के लिए पति शत्रु होते हैं। वृद्धावस्था में स्त्री का पति शत्रु के समान माना जाता है क्योंकि वृद्धावस्था में सहवास या भावनात्मक संबंध कई बार तनाव, असहजता या दुर्भावना का कारण बन सकता है। यह सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से एक विवादास्पद विचार हो सकता है, परन्तु इसमें वृद्ध स्त्रियों की सुरक्षा, सम्मान और मानसिक स्थिति के प्रति सजगता निहित है। यह भी दर्शाता है कि जीवन के विभिन्न चरणों में संबंधों का स्वरूप और प्रकृति बदल जाती है और कभी-कभी पूर्व संबंध शत्रुतापूर्ण हो सकता है।

चोरों के लिए चन्द्रमा शत्रु है, इसका तात्पर्य है कि चाँद की रौशनी चोरों के लिए उनकी गतिविधियों को मुश्किल बना देती है। चंद्रमा की रोशनी में चोरी करना कठिन हो जाता है क्योंकि प्रकाश उनके लिए खतरा उत्पन्न करता है। इस संदर्भ में, चंद्रमा प्रतीक है प्रकाश और जागरूकता का, जो अंधकार और छल के शत्रु होते हैं।

यह सभी उदाहरण सामाजिक, मानसिक, और नैतिक स्तर पर शत्रुता के विभिन्न रूपों को दर्शाते हैं। शत्रुता केवल बाह्य संघर्ष नहीं, बल्कि आंतरिक और भावनात्मक स्तर पर भी होती है। लालसा, मूर्खता, वृद्धावस्था के संबंध, और अंधकार—यह सभी जीवन की जटिलताओं और मानवीय संबंधों की विविधताएं हैं जिनमें शत्रुता के अलग-अलग रूप उभरते हैं।

इससे यह भी समझना चाहिए कि शत्रुता का स्वरूप परिस्थिति, मनोवृति और दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। हर शत्रुता का निवारण अलग-अलग ढंग से करना होता है, जो समझ और विवेक की मांग करता है।