श्लोक १०-२०

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
शोकेन रोगा वर्धन्ते पयसा वर्धते तनुः ।
घृतेन वर्धते वीर्यं मांसान्मांसं प्रवर्धते ॥ ॥१०-२०॥
शोक से रोग बढ़ते हैं, दूध से शरीर बढ़ता है। घी से वीर्य बढ़ता है, और मांस से मांस की वृद्धि होती है।

शोक मानसिक अवसाद या चिंता का सूचक है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है और रोगों को बढ़ावा देता है। मानसिक तनाव का प्रभाव केवल मन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह शारीरिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। रोगों का बढ़ना इस मानसिक स्थिति के कारण शरीर के प्राकृतिक संतुलन के बिगड़ने का परिणाम होता है।

पयसा अर्थात् दूध, पोषण का प्रमुख स्रोत है जो तन को बढ़ाने में सहायक होता है। दूध में उपस्थित पोषक तत्व शरीर के विकास और तंतु के संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह न केवल बल प्रदान करता है, बल्कि शरीर के विभिन्न अंगों के उचित कार्य को भी सुनिश्चित करता है।

घृत या घी का संबंध वीर्य की वृद्धि से है। वीर्य को शक्ति, पुरुषार्थ और स्वास्थ्य का प्रतीक माना गया है। घी शारीरिक और मानसिक ऊर्जा का स्रोत है, जो शरीर में उर्जा के प्रवाह को संतुलित करता है और वीर्य की गुणवत्ता तथा मात्रा दोनों में वृद्धि करता है। घी का सेवन सामंजस्यपूर्ण रूप से शरीर को सशक्त बनाता है।

मांस का सेवन मांस की वृद्धि के लिए आवश्यक होता है। यह शरीर के तंतुओं के पुनर्निर्माण और बल वृद्धि के लिए उपयुक्त माना जाता है। मांस शरीर के ऊतकों की मरम्मत एवं संवर्धन के लिए आवश्यक अमीनो एसिड प्रदान करता है, जिससे मांसपेशियों और अन्य शारीरिक संरचनाओं का विकास होता है।

इस प्रकार, मानसिक स्वास्थ्य और आहार के बीच घनिष्ठ संबंध होता है। मानसिक विकारों से शारीरिक रोगों का उद्भव होता है, और उचित पोषण से शरीर की वृद्धि और स्वास्थ्य में सुधार होता है। मानसिक संतुलन और उचित आहार दोनों मिलकर व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य का आधार होते हैं।