श्लोक १०-१६

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेश्च कुतो बलम् ।
वने सिंहो यदोन्मत्तः मशकेन निपातितः ॥ ॥१०-१६॥
जिसके पास बुद्धि है, उसका बल है; और जिसके पास बुद्धि नहीं है, उसका बल कहाँ से होगा? जैसे जंगल में सिंह जब उन्मत्त होता है तो एक मषक द्वारा भी गिराया जा सकता है।

बल और बुद्धि के बीच के इस सूक्ष्म संबंध को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। बुद्धि बिना शक्ति, अंधाधुंध और दिशाहीन हो जाती है, और शक्ति बिना बुद्धि के केवल विनाशकारी हो सकती है। बुद्धि शक्ति का आधार है, क्योंकि बिना विवेक के बल कहीं उपयोगी नहीं होता। यह संतुलन ही सशक्तता की पहचान है।

एक सिंह, जो जंगल का राजा और शक्तिशाली जीव माना जाता है, जब उन्मत्त या अंधाधुंध क्रोधित होता है, तो वह आसानी से कमज़ोर हो सकता है। उस समय एक मामूली सा मषक, जो सामान्यतः कमजोर और अनायास हीन वस्तु है, सिंह को गिरा सकता है। यह उदाहरण यह दर्शाता है कि असली शक्ति केवल भौतिक बल या बाहरी शक्ति में नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता और संयम में होती है।

जब कोई व्यक्ति या सत्ता अंधाधुंध क्रोध या मूर्खता के कारण नियंत्रण खो देता है, तो वह सामान्यतः किसी भी साधारण या मामूली कारक से पराजित हो सकता है। अज्ञानता और असंयम शक्तिशाली व्यक्तित्व को भी कमजोर कर देते हैं। इसलिए, सही दिशा में बुद्धि का होना आवश्यक है ताकि शक्ति प्रभावी, स्थायी और उपयोगी बने।

यह विचार राजनीति, नेतृत्व, और सामाजिक जीवन के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। केवल शक्ति या सैन्य बल पर निर्भर रहना अंततः पतन का कारण बन सकता है यदि वह विवेक और रणनीति के बिना हो। बुद्धि के बिना बल क्षणिक और अस्थिर होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि सच्ची सशक्तता तब ही प्राप्त होती है जब बल बुद्धि के साथ संलग्न हो।

यह प्रश्न उठता है कि क्या बल बिना बुद्धि के कभी स्थायी और प्रभावशाली हो सकता है? वास्तविक शक्ति तभी होती है जब वह संयम, समझदारी और दूरदर्शिता से परिपूर्ण हो। अन्यथा, अज्ञान और क्रोध के अधीन बल विनाश और पतन को ही निमंत्रण देता है।

अतः, यह समझना आवश्यक है कि बल का मूल्यांकन केवल उसकी मात्रा से नहीं, बल्कि उसके प्रयोग के ज्ञान और विवेक से होना चाहिए। शक्ति और बुद्धि का संयोजन ही जीवन के विविध संघर्षों में विजयी बनाता है।