श्लोक १०-१५

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
एकवृक्षसमारूढा नानावर्णा विहङ्गमाः ।
प्रभाते दिक्षु दशसु यान्ति का तत्र वेदना ॥ ॥१०-१५॥
एक ही वृक्ष पर चढ़े विभिन्न रंगों के पक्षी सुबह की दिशा की दस दिशाओं में उड़ जाते हैं, तब वहाँ क्या पीड़ा होगी?

यह विचार सामाजिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक विविधताओं के संदर्भ में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। एक वृक्ष, जो एक साझा आधार और केंद्र का प्रतीक है, पर विभिन्न रंगों के पक्षियों का एकत्र होना विविधताओं का प्रतिनिधित्व करता है। जब ये विभिन्न पक्षी सुबह होते ही अपने-अपने दिशाओं में उड़ जाते हैं, तो वे समुदाय या समाज में अलग-अलग विचारधाराओं, मतभेदों, और असहमति की स्थिति को दर्शाते हैं।

यह स्थिति परस्पर एकजुटता के अभाव और विखंडन को इंगित करती है। जब विभिन्न समूह या व्यक्तित्व एक सामान्य आधार से जुड़कर भी अलग-अलग मार्ग अपनाते हैं, तो सामाजिक समरसता में दरारें उत्पन्न होती हैं। यह विखंडन शांति और स्थिरता के लिए खतरा बन जाता है, क्योंकि संगठित समुदाय की जगह विविधता के नाम पर बिखराव होता है।

इस प्रकार की परिस्थिति में पीड़ा की अनुभूति अनिवार्य है। जब एक साझा स्रोत से उत्पन्न तत्व अपने मतभेदों के कारण अलग-अलग दिशाओं में बिखर जाते हैं, तो किसी भी प्रकार का सामूहिक सहयोग, सुरक्षा या विकास संभव नहीं रहता। यह स्थिति किसी भी संस्था या समाज के लिए घातक साबित हो सकती है क्योंकि यह असहमति, अविश्वास और संघर्ष को जन्म देती है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी, यह प्रतीकात्मक है कि जब मनुष्य के विचार और लक्ष्य एकता से भटके हुए हों, तब आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार की पीड़ा उत्पन्न होती है। जैसे पक्षी उड़ते हुए दूर चले जाते हैं, वैसे ही विचार और मूल्य बिखर जाते हैं, जिससे मानसिक अशांति और समाज में असंतुलन बढ़ता है।

राजनीतिक संदर्भ में, यह स्थिति अस्थिर शासन, विभाजनकारी नीतियों, और भेदभाव की समस्या को उजागर करती है। विभिन्न समूहों का एक ही मंच पर होने के बावजूद उनका विखंडन, नेतृत्व की असफलता या सामाजिक असमानताओं की अभिव्यक्ति होती है।

यह प्रश्न कि 'का तत्र वेदना' (वहाँ क्या पीड़ा होगी), स्वाभाविक रूप से पूछता है कि विखंडन और असहमति की स्थिति में जो पीड़ा उत्पन्न होती है, वह सामाजिक, मानसिक और राजनीतिक क्षति के रूप में कैसे सामने आती है। पीड़ा का अस्तित्व तब उत्पन्न होता है जब एकता और सहमति की कमी होती है, और विभिन्नताओं का सामंजस्य खो जाता है।

अतः यह विचार एकत्रता, सहिष्णुता, और समरसता की आवश्यकता पर जोर देता है। विविधता में एकता को बनाए रखना ही किसी भी समाज, समूह या व्यक्तित्व की सफलता और स्थिरता का आधार होता है। इसके अभाव में विखंडन और पीड़ा अपरिहार्य हैं।