श्लोक १०-१४

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
माता च कमला देवी पिता देवो जनार्दनः ।
बान्धवा विष्णुभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ ॥१०-१४॥
माँ कमला देवी है, पिता जनार्दन देव हैं।
बंधु विष्णु के भक्त हैं और स्वदेश तीनों लोक हैं।

परिवार और देश की पहचान इस प्रकार की जाती है कि माता को कमला देवी (लक्ष्मी), पिता को जनार्दन (भगवान विष्णु) माना जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि जीवन की आधारशिला और संरक्षण की भूमिका मातृ और पितृ दोनों में दिव्यता की उपमा दी गई है। माता को समृद्धि और पोषण का स्रोत, पिता को संरक्षण और पालनहार के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।

बंधु या संबंधी विष्णु भक्त माने गए हैं, जो सद्भाव, भक्ति और धार्मिक समर्पण की अभिव्यक्ति हैं। इनके माध्यम से सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों का आध्यात्मिक और नैतिक आधार प्रदर्शित होता है। यह बान्धव समुदाय एकजुटता, धर्मपालन, और विशिष्ट निष्ठा की प्रतीक हैं, जो समाज के स्थायित्व के लिए आवश्यक है।

स्वदेश को भुवनत्रय कहा गया है — तीनों लोक, अर्थात् स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल। इससे व्यापक दृष्टि मिलती है कि व्यक्ति का देश या मातृभूमि केवल भौतिक क्षेत्र नहीं, बल्कि समस्त ब्रह्मांडीय व्यवस्था में उसका स्थान और कर्तव्य है। देश के प्रति निष्ठा इतनी व्यापक और समग्र होनी चाहिए कि वह संपूर्ण विश्व या तीनों लोकों के कल्याण का चिंतक हो।

यह विचारधारा पारंपरिक मान्यताओं को नहीं केवल पुष्ट करती है, बल्कि मनुष्य के कर्तव्य और समर्पण के स्तर को भी परिभाषित करती है। माता-पिता और बंधु-स्वदेश के प्रति यह श्रद्धा केवल सामाजिक या भावनात्मक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नीतिगत है। इसमें जीवन के सार और सामाजिक-सांस्कृतिक दायित्व का सम्मिलित स्वरूप प्रस्तुत होता है।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या व्यक्ति की श्रद्धा और समर्पण केवल सीमित मानवीय संबंधों तक सीमित होनी चाहिए या उसे व्यापक लोककल्याण के सिद्धांत के साथ जोड़ना आवश्यक है? स्वदेश का भुवनत्रय के रूप में प्रतिपादन इस बात का द्योतक है कि समर्पण और कर्तव्य के आयाम विस्तृत और सार्वभौमिक हैं।

इस संदर्भ में, यह समझना आवश्यक है कि व्यक्तिगत संबंध और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच सामंजस्य स्थापित करना जीवन का आधार है। माता-पिता के प्रति कृतज्ञता और सम्मान के साथ-साथ बान्धवों की संगति और देश के प्रति निष्ठा जीवन को पूर्णता प्रदान करती है।