द्रुमालयं पत्रफलाम्बुसेवनम् ।
तृणेषु शय्या शतजीर्णवल्कलं
न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम् ॥ १०-१२॥
जहाँ पेड़ों के आवास हैं और पत्ते तथा फल का सेवन होता है।
जहाँ तृणों पर शय्या होती है और शतायु वृक्षों की लकड़ी रहती है,
ऐसे स्थान में धनहीन जीवन से भरे परिवार के बीच जीवन श्रेष्ठ नहीं।
वन और उसके निवासियों का जीवन दर्शन, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस विचारधारा में 'वरं वनं' का तात्पर्य एक ऐसे वन से है जहाँ महान और शक्तिशाली जीव—व्याघ्र (शेर), गज (हाथी), इन्द्र (सिंह)—सेवा करते हैं। ये जीव शक्ति, सम्मान और सामर्थ्य के प्रतीक हैं। वन का ऐसा स्वरूप प्रतीकात्मक है जो स्थायित्व, सुरक्षा, और समृद्धि दर्शाता है।
वृक्षों का आवास, पत्ते और फल भोजन का सूचक हैं जो प्रकृति की उदारता और जीवों की सहजीवन व्यवस्था को व्यक्त करते हैं। तृणों पर शय्या और शतजीर्णवल्कलाएँ जीवन की सहजता, प्राकृतिकता, और समय की अनुभूति के रूप में स्थापित होती हैं। ये तत्व उस जीवन का प्रतीक हैं जो वस्त्रहीन, साधारण और प्राकृतिक हो, फिर भी अपने स्थान पर श्रेष्ठ हो सकता है।
परंतु, इसी जीवन की तुलना में धनहीनता का अर्थ है संसाधनों और आर्थिक सुरक्षा की कमी, जो परिवार और समुदाय में स्थिरता और सम्मान की कमी को जन्म देती है। धनहीन जीवन में जीवनयापन के लिए आवश्यक आधारभूत वस्तुओं का अभाव होता है, जिससे व्यक्ति और परिवार आर्थिक, सामाजिक तथा मानसिक रूप से असुरक्षित रहते हैं।
परिवार में बन्धुता, सामाजिक संबंध, और सम्मान की आवश्यकता अनिवार्य है, किन्तु जब धन और संसाधन नहीं होते तो यह जीवन कठिन और संघर्षपूर्ण हो जाता है। संसाधनों के बिना जीवन का सामाजिक और मानसिक पक्ष कमज़ोर पड़ जाता है। इस स्थिति में चाहे जीवन प्राकृतिक और सहज हो, वह धनहीनता की वजह से अशुभ और कठिन माना जाता है।
यह विचार मनुष्य जीवन में भौतिक और सामाजिक पक्ष की अनिवार्यता को स्पष्ट करता है। प्राकृतिक सरलता और सामर्थ्य के बीच संतुलन आवश्यक है; केवल प्राकृतिकता या केवल भौतिक धन से जीवन पूर्ण नहीं होता। इससे स्पष्ट होता है कि जीवन में धन की उपस्थिति न केवल भौतिक आवश्यकता है, बल्कि सामाजिक और मानसिक सुरक्षा का आधार भी है।
यह प्रश्न भी उठता है कि क्या केवल प्राकृतिक और सरल जीवन ही सार्थक है, या धन और संसाधन भी उतने ही आवश्यक हैं? वास्तविकता यह है कि जीवन के लिए एक सुरक्षित और सम्मानित आधार आवश्यक होता है, जिसके बिना कोई भी सामाजिक संबंध स्थिर नहीं रह सकते। इस प्रकार, जीवन की गुणवत्ता में संसाधनों का योगदान अपरिहार्य है।