श्लोक ०१-०५

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः ॥ ॥०१-०५॥
दुष्ट पत्नी, धूर्त मित्र, उत्तर देनेवाला सेवक, और साँप वाले घर में वास — यह मृत्यु के समान है, इसमें कोई संदेह नहीं।

मनुष्य का जीवन केवल बाहरी परिस्थितियों से नहीं, बल्कि उसके सबसे निकटवर्ती संबंधों और निवास की स्थिति से भी प्रभावित होता है। जब ये तत्त्व विनाशकारी होते हैं, तो उनका प्रभाव धीरे-धीरे व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से नष्ट कर सकता है।

दुष्ट पत्नी एक ऐसा कारक है जो न केवल पारिवारिक शांति को भंग करती है, बल्कि व्यक्ति के आत्मबल, मानसिक स्थिरता और निर्णय क्षमता को भी छिन्न-भिन्न कर सकती है। स्त्री और पुरुष के संबंध में यदि परस्पर विश्वास, आदर और सद्भाव न हो, और एक पक्ष दुष्ट प्रवृत्ति का हो, तो वह संबंध विष के समान होता है।

धूर्त मित्र विश्वासघात का स्रोत होता है। ऐसा व्यक्ति संकट के समय साथ नहीं देता, बल्कि अपने लाभ हेतु छल करता है। मित्रता का मूल भाव समर्पण, सहयोग और निष्ठा होता है, और यदि वह भाव नहीं हो तो ऐसा मित्र शत्रु से भी अधिक हानिकारक हो सकता है क्योंकि उसका छल भीतर से आता है।

सेवक का व्यवहार भी व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि सेवक वफादार न हो और प्रत्येक बात का उत्तर देने वाला — अर्थात् आदेश की अवहेलना करने वाला, तर्क-वितर्क में संलग्न रहने वाला — हो, तो उसका सहयोग बाधा बन जाता है। ऐसा सेवक कार्य की सहजता में अवरोध उत्पन्न करता है और व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करता है।

जहाँ निवास होता है, वह स्थान सुरक्षा, शांति और स्थिरता का स्रोत होना चाहिए। यदि वह स्थान साँप जैसे प्राणघातक जीवों से भरा हो, तो वह जीवन के लिए खतरा बन जाता है। ऐसे स्थान में वास करना स्वयं को लगातार संकट में डालने के समान है।

इन चारों स्थितियों में एक समान बात यह है कि ये सभी निकट संबंधी या नित्य संपर्क में आने वाले तत्त्व हैं — पत्नी, मित्र, सेवक और घर। यदि इनमें से कोई भी विषाक्त या असुरक्षित हो, तो व्यक्ति का जीवन धीरे-धीरे मृत्यु की ओर बढ़ता है, चाहे वह कितनी भी बुद्धिमत्ता या साधन-संपन्नता से युक्त क्यों न हो।

इसलिए विवेकशील व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने जीवन में इन प्राथमिक संबंधों का चुनाव अत्यंत सावधानी, समर्पण और बुद्धिमत्ता से करे। क्योंकि इनके दोष व्यक्ति को उस स्थिति तक पहुँचा सकते हैं जहाँ जीवन का प्रत्येक पक्ष कष्टप्रद, असंतुलित और अपूर्ण हो जाता है।