श्लोक ०१-०३

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
तदहं सम्प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया ।
येन विज्ञातमात्रेण सर्वज्ञात्वं प्रपद्यते ॥ ॥०१-०३॥
इसलिए मैं लोकहित की कामना से (यह) भली-भाँति कहता हूँ, जिसे केवल जान लेने मात्र से सर्वज्ञता प्राप्त हो जाती है।

श्रेष्ठ ज्ञान की प्रस्तुति का मूल उद्देश्य मात्र सूचना देना नहीं, बल्कि लोक कल्याण और हित की भावना से प्रेरित होकर गहन शिक्षा प्रदान करना है। जब कोई ज्ञान 'सर्वज्ञात्वं प्रपद्यते' (सर्वज्ञता प्राप्त हो जाती है) जैसी गुणवत्ता से युक्त होता है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति सचमुच हर विषय का ज्ञानी हो जाता है, बल्कि यह कि उसे जीवन के मूलभूत सिद्धांतों, व्यवहारिक नीतियों, और नैतिक मूल्यों का ऐसा स्पष्ट बोध हो जाता है जिससे वह किसी भी परिस्थिति में सही निर्णय लेने में सक्षम हो जाता है।

सर्वज्ञता का तात्पर्य यहाँ परिपूर्णता से है – ज्ञान की वह अवस्था जहाँ व्यक्ति को जीवन के गूढ़ रहस्यों और सत्य का अनुभव हो जाता है। यह ऐसा ज्ञान है जो सतही नहीं, बल्कि गहरा और व्यावहारिक है, जो व्यक्ति को तात्कालिक लाभ से परे जाकर दीर्घकालिक कल्याण की दिशा में प्रवृत्त करता है। लोकहित की कामना से प्रस्तुत किया गया ज्ञान समाज को दिशा देता है, व्यक्तिगत उन्नति के साथ-साथ सामूहिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।

ज्ञान की यह शक्ति, जिसे 'विज्ञातमात्रेण' (केवल जान लेने मात्र से) सर्वज्ञता प्राप्त होती है, दर्शाती है कि कुछ सिद्धांत ऐसे होते हैं जिनका केवल सैद्धांतिक नहीं, बल्कि आत्मसात्करण अत्यंत प्रभावकारी होता है। यह सिर्फ तथ्यों का संग्रह नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला, नीतिगत कौशल, और नैतिक विवेक का समन्वय है। ऐसा ज्ञान व्यक्ति को अज्ञानता के बंधन से मुक्त करता है और उसे एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है।

यह ज्ञान की गुणवत्ता को भी रेखांकित करता है। कुछ शिक्षाएँ ऐसी होती हैं जो मात्र शब्दों का संग्रह होती हैं, जबकि कुछ ऐसी होती हैं जो जीवन का सार प्रस्तुत करती हैं। जिन सिद्धांतों में लोकहित की भावना समाहित होती है और जो मात्र जानने से ही पूर्णता की ओर ले जाती हैं, वे ही सच्चे अर्थों में श्रेष्ठ ज्ञान कहलाती हैं। यह ज्ञान न केवल व्यक्तिगत चेतना को विकसित करता है बल्कि सामाजिक व्यवस्था और न्याय को भी सुदृढ़ करता है।

इस प्रकार, ऐसा ज्ञान एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करता है, जो व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। यह नीतिशास्त्र की नींव है, जो मानव व्यवहार को परिष्कृत करता है और समाज में संतुलन व व्यवस्था स्थापित करता है। यह उस बुद्धिमत्ता की ओर इंगित करता है जो केवल तथ्यों से नहीं, बल्कि सत्य की गहरी समझ और नैतिक आचरण से उत्पन्न होती है। ऐसे ज्ञान का प्रचार-प्रसार ही समाज के वास्तविक हित में होता है।