स्त्रीणां द्विगुण आहारो लज्जा चापि चतुर्गुणा ।
साहसं षड्गुणं चैव कामश्चाष्टगुणः स्मृतः ॥ ॥१७॥
साहसं षड्गुणं चैव कामश्चाष्टगुणः स्मृतः ॥ ॥१७॥
स्त्रियों का आहार दो गुना, लज्जा चार गुना, साहस छह गुना और कामना आठ गुना मानी गई है।
शारीरिक एवं मानसिक भिन्नताओं की धारणा केवल जैविक विश्लेषण तक सीमित नहीं है; सांस्कृतिक एवं दार्शनिक स्तर पर भी मानव-समूहों के स्वरूपों का विश्लेषण सदा हुआ है। यहाँ प्रस्तुत विचार स्त्रीस्वभाव की कुछ विशिष्टताओं को सांख्यिक रूप में प्रतिपादित करता है। आहार की द्विगुणता केवल मात्रात्मक पोषण की बात नहीं है, यह उनकी जीवशक्ति, संतति-पालनकर्तृता और शरीरधारण के गूढ़ पक्षों की ओर संकेत करता है—जहाँ प्रकृति स्त्रीदेह को सर्जनात्मक ऊर्जाओं के अधिक समीप रखती है।
लज्जा का चतुर्गुणत्व एक सामाजिकीकरण का परिणाम है, किंतु साथ ही यह स्त्री-चेतना में निहित एक प्रकार की आत्मसंरक्षण प्रणाली भी है। यह वह आंतरिक सजगता है जो अपने अस्तित्व को सामाजिक व्यवहार के पारंपरिक संप्रेषणों से जोड़ती है। लज्जा मात्र संकोच नहीं, वह कई बार सत्ता-विन्यास में आत्मानुशासन का आयाम भी ग्रहण करती है।
साहस के षड्गुणत्व की स्वीकृति सामान्य धारणाओं के प्रतिकूल है। यह केवल युद्ध या शारीरिक संघर्ष की बात नहीं करता, अपितु सामाजिक बंधनों, विषम परिस्थितियों, वर्जनाओं और बारंबार पारिवारिक-सामाजिक दवाबों के भीतर आत्मसम्मान की रक्षा हेतु जो अदम्य बल चाहिए—वह स्त्रीसाहस की असाधारणता को रेखांकित करता है। यह साहस सन्निपातों में जीवित रहने की वह चुप्पी भी हो सकती है जो कर्तव्यों में विघ्न नहीं लाती।
काम की अष्टगुणता को समझना केवल यौनिकता तक सीमित रहना नहीं है। यह आकर्षण, अनुराग, करुणा, मातृत्व, रचनात्मकता, संवेदनशीलता, और सृजन की वृत्तियों तक विस्तारित है। स्त्रीस्वभाव में 'काम' केवल भोग की प्रवृत्ति नहीं, अपितु संबंधों में जीवनरस की गहराइयों तक पहुँचने की जिज्ञासा है।
इस संपूर्ण विश्लेषण में कोई स्थूल व सामान्यीकृत दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया है; यह न तो स्त्री की प्रशंसा है न आलोचना—यह केवल एक सांस्कृतिक, सामाजिक और अस्तित्वगत निरीक्षण है। इस प्रकार की संख्या आधारित विशेषताएँ किसी यांत्रिक तुलनात्मकता के निमित्त नहीं होतीं, बल्कि वे गूढ़ मानवतत्त्वों को सूत्ररूपेण प्रकट करती हैं। क्या संख्या द्वारा गुणों को नापना उचित है? यह प्रश्न स्वयं में दार्शनिक है—किन्तु उत्तर नापने में नहीं, सोचने की प्रक्रिया में निहित है।
लज्जा का चतुर्गुणत्व एक सामाजिकीकरण का परिणाम है, किंतु साथ ही यह स्त्री-चेतना में निहित एक प्रकार की आत्मसंरक्षण प्रणाली भी है। यह वह आंतरिक सजगता है जो अपने अस्तित्व को सामाजिक व्यवहार के पारंपरिक संप्रेषणों से जोड़ती है। लज्जा मात्र संकोच नहीं, वह कई बार सत्ता-विन्यास में आत्मानुशासन का आयाम भी ग्रहण करती है।
साहस के षड्गुणत्व की स्वीकृति सामान्य धारणाओं के प्रतिकूल है। यह केवल युद्ध या शारीरिक संघर्ष की बात नहीं करता, अपितु सामाजिक बंधनों, विषम परिस्थितियों, वर्जनाओं और बारंबार पारिवारिक-सामाजिक दवाबों के भीतर आत्मसम्मान की रक्षा हेतु जो अदम्य बल चाहिए—वह स्त्रीसाहस की असाधारणता को रेखांकित करता है। यह साहस सन्निपातों में जीवित रहने की वह चुप्पी भी हो सकती है जो कर्तव्यों में विघ्न नहीं लाती।
काम की अष्टगुणता को समझना केवल यौनिकता तक सीमित रहना नहीं है। यह आकर्षण, अनुराग, करुणा, मातृत्व, रचनात्मकता, संवेदनशीलता, और सृजन की वृत्तियों तक विस्तारित है। स्त्रीस्वभाव में 'काम' केवल भोग की प्रवृत्ति नहीं, अपितु संबंधों में जीवनरस की गहराइयों तक पहुँचने की जिज्ञासा है।
इस संपूर्ण विश्लेषण में कोई स्थूल व सामान्यीकृत दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया है; यह न तो स्त्री की प्रशंसा है न आलोचना—यह केवल एक सांस्कृतिक, सामाजिक और अस्तित्वगत निरीक्षण है। इस प्रकार की संख्या आधारित विशेषताएँ किसी यांत्रिक तुलनात्मकता के निमित्त नहीं होतीं, बल्कि वे गूढ़ मानवतत्त्वों को सूत्ररूपेण प्रकट करती हैं। क्या संख्या द्वारा गुणों को नापना उचित है? यह प्रश्न स्वयं में दार्शनिक है—किन्तु उत्तर नापने में नहीं, सोचने की प्रक्रिया में निहित है।