श्लोक ०२-०१

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
अनृतं साहसं माया मूर्खत्वमतिलोभिता ।
अशौचत्वं निर्दयत्वं स्त्रीणां दोषाः स्वभावजाः ॥ ॥०२-०१॥
झूठ, अत्यधिक साहस, माया, मूर्खता, अत्यधिक लालसा,
अशुद्धता और निर्दयता ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं।

इस श्लोक में स्त्रियों के स्वाभाविक दोषों का उल्लेख है जो सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्राचीन भारतीय ग्रंथों में वर्णित हैं। 'अनृतं' अर्थात् असत्य या झूठ, 'साहसं' अतिवाहिकता या अनावश्यक साहस, और 'माया' छल या मोह का सूचक है। मूर्खत्वमतिलोभिता का अर्थ है अत्यधिक लालसा और बुद्धि की कमी, जो विवेकहीनता को दर्शाती है। अशौचत्वं शारीरिक या मानसिक अशुद्धता को सूचित करता है, तथा निर्दयत्वं भावनात्मक कठोरता या दया की कमी को इंगित करता है।

ऐसे दोष प्राचीन सामाजिक व्यवस्थाओं में स्त्रियों के चरित्र और स्वभाव की सामान्य मान्यताओं के अनुरूप देखे गए, जो तत्कालीन सांस्कृतिक, धार्मिक और नैतिक विचारधाराओं से प्रभावित थे। इस प्रकार के दोषों का उल्लेख ग्रंथों में स्त्रीस्वभाव की एक विशिष्ट छवि प्रस्तुत करता है, जो पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका और व्यवहार को परिभाषित करने का एक साधन था।

तर्कसंगत दृष्टि से, ये दोष सामान्यीकरण हैं और आधुनिक सामाजिक दृष्टिकोण से विवादास्पद भी माने जा सकते हैं, क्योंकि व्यक्ति विशेष के चरित्र को लिंग के आधार पर सीमित करना न्यायसंगत नहीं। परंतु श्लोक की भाषा और विचारधारा उस काल की सामाजिक एवं दार्शनिक मान्यताओं का द्योतक है, जो नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण से व्यवहार और मनोवृत्ति के प्रकारों का विवेचन करती है।

ऐसे दोषों का नाम लेना न केवल चरित्र के नकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डालता है, अपितु यह भी दर्शाता है कि नीति के अनुसार समष्टिगत व्यवहार को समझना आवश्यक है, जिसमें व्यक्तिगत दोषों की पहचान कर उन्हें सुधारने की ओर संकेत होता है। यह श्लोक व्यवहारिकता और नैतिक चेतना के संदर्भ में लिंग आधारित विशिष्टताएँ भी प्रदर्शित करता है, जो नीतिशास्त्र की समग्र दृष्‍टि के लिए महत्वपूर्ण हैं।