विश्वासो नैव कर्तव्यः स्त्रीषु राजकुलेषु च ॥ ॥१५॥
विश्वास का प्रश्न तब अधिक जटिल हो जाता है जब उसके अधार को स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ, अप्रत्याशित प्रतिक्रिया, अथवा अंतर्निहित स्वार्थ नियंत्रित करते हैं। यह कथन उन सत्ता-रचनाओं और प्रवृत्तियों को रेखांकित करता है जहाँ विश्वास एकतरफा हो तो विनाशकारी हो सकता है।
नदी, जब शांत प्रतीत होती है, तभी वह भयंकर बाढ़ ला सकती है; उसका प्रवाह, उसकी दिशा, उसकी तीव्रता — सब कुछ अनिश्चित होता है। वह प्रकृति की प्रतीक है, परंतु वह नियंत्रण से बाहर होने पर विनाश का कारण भी बनती है। उसी प्रकार, शस्त्रधारी — चाहे वह सैनिक हो, डाकू हो, अथवा सामान्य जन — उसके पास शस्त्र का होना ही संभाव्य हिंसा का सूचक है। वहाँ विश्वास का स्थान विवेक, निरीक्षण और दूरदृष्टि से निर्देशित होना चाहिए।
नख और सींग — ये पशुओं के प्राकृतिक शस्त्र हैं। पशु हिंसा की प्रवृत्ति से वंचित नहीं होते, चाहे वे पालतू प्रतीत हों। उनका स्वभाव पूर्वानुमेय नहीं होता। उदाहरणार्थ, गाय सीधी प्रतीत होती है, परंतु यदि उसका बछड़ा संकट में हो, तो वह अत्यन्त आक्रामक बन सकती है। यहाँ प्रकृति की निष्क्रियता नहीं, उसकी संभाव्य सक्रियता पर ध्यान है।
स्त्रियाँ और राजपरिवार — ये दो ऐसे संदर्भ हैं जो सामूहिक व्यवहार की अपेक्षा नहीं, अपितु सामाजिक सत्ता और मनोवैज्ञानिक संरचनाओं से सम्बद्ध हैं। स्त्रियों को यहाँ मात्र लिंगगत दृष्टि से नहीं, अपितु उनकी भावनात्मक गहराई, जटिलता, एवं अनेक स्तरों पर प्रभावी सामाजिक स्थिति के रूप में देखा गया है। भावनाओं की गति, सामाजिक बन्धनों का प्रभाव, एवं संभाव्य चंचलता — ये सभी इस कथन के मूल में हैं। नारी का व्यवहार सामाजिकीकरण, अपेक्षाएँ, एवं व्यक्तिगत अनुभवों से प्रभावित होता है, और इसीलिए पूर्ण विश्वास वहाँ भी विचाराधीन होता है। यह अविश्वास स्त्रीविरोध नहीं, अपितु विवेकशीलता का आह्वान है।
राजपरिवार — अर्थात् सत्ता-संरचना। वहाँ विश्वास करना सबसे बड़ा राजनीतिक जोखिम हो सकता है। सत्ता में जो रहते हैं, उनकी प्राथमिकता शक्ति, संरक्षण, और यथास्थिति की रक्षा होती है। उनके निर्णय नैतिकता से अधिक सत्ता-संतुलन से निर्देशित होते हैं। वहाँ विश्वास करने से पहले प्रत्येक स्तर पर उसका मूल्यांकन आवश्यक है, अन्यथा वह विश्वास छल, षड्यंत्र और अन्ततः पतन का कारण बन सकता है।
यह शिक्षण केवल सावधानी का आह्वान नहीं, अपितु एक व्यापक जीवनदृष्टि है — जहाँ बाह्य सौम्यता या सम्बन्धात्मक निकटता के पीछे छिपे संभाव्य संकटों को समझना, और उन पर तटस्थ विवेक से दृष्टिपात करना आवश्यक है। यहाँ 'अविश्वास' का अर्थ अंधेपन से विमुक्त विवेक है, न कि नितान्त संदेह या विरोध।