रूपशीलां न नीचस्य विवाहः सदृशे कुले ॥ ॥१४॥
समाज में विवाह केवल व्यक्तिगत या भावनात्मक विषय न होकर सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक स्थिरता का एक मुख्य आधार रहा है। यदि विवाह केवल रूप, आकर्षण या गुण के आधार पर हो, किन्तु सामाजिक पृष्ठभूमि की उपेक्षा कर दिया जाए, तो पारिवारिक और सामाजिक समरसता के विघटन की प्रबल सम्भावना जन्म लेती है। 'कुल' अर्थात् वंश, संस्कार, और सामाजिक मान्यता का समुच्चय—यह न केवल व्यक्ति के व्यक्तिगत संस्कारों का परिचायक होता है, बल्कि उस व्यक्ति के चारित्रिक विकास और सामाजिक उत्तरदायित्वों की भी नींव होता है।
यहाँ कथन यह नहीं कर रहा कि रूप, गुण, या शील का मूल्य नहीं है; अपितु यह यह कह रहा है कि यदि वे गुण केवल बाह्य हैं, परन्तु व्यक्ति या उसका परिवार सामाजिक दृष्टि से पतित, संस्कारहीन, या अधम हो, तो मात्र उन गुणों पर आकर्षित होकर विवाह करने का निर्णय स्वयं के कुल की प्रतिष्ठा और भावी पीढ़ियों की स्थिरता को संकट में डाल सकता है। कुल, केवल एक जातीय अवधारणा नहीं, अपितु मूल्य, परम्परा, और समाज के साथ संवाद की निरन्तरता है। इस निरन्तरता का विघटन दीर्घकालिक दृष्टि से व्यक्ति को केवल मानसिक ही नहीं, सामाजिक संघर्षों की ओर भी अग्रसर कर सकता है।
दूसरी ओर, यदि कन्या शारीरिक सौंदर्य से विहीन हो परन्तु उसका कुल कुलीन हो, अर्थात उसमें जीवन के आधारभूत संस्कार, सांस्कृतिक शिक्षा, और सामाजिक गरिमा विद्यमान हो, तो वह गृहस्थजीवन की नींव दृढ़ बना सकती है। यह तात्त्विक दृष्टि विवाह को केवल एक व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं, अपितु सामाजिक उत्तरदायित्व के रूप में प्रस्तुत करती है।
समाज में प्रचलित रूपवाद—जहाँ केवल बाह्य सौंदर्य की महत्ता मानी जाती है—उसके विरुद्ध यह दृष्टिकोण एक प्रकार से प्रतिरोध है। यह केवल एक नैतिक उपदेश नहीं, अपितु दीर्घदृष्टियुक्त सामाजिक युक्ति है। विवाह एक निजी चयन के अतिरिक्त सामाजिक संस्था भी है, जिसकी प्रभावधारा वंश, परिवार, और समाज के अन्य स्तरों तक पहुँचती है। इस कारण से, केवल सौंदर्य, गुण या निजी आकर्षण के आधार पर किसी कन्या को वरना विवेकहीनता कही जा सकती है।
यह दृष्टिकोण न केवल विवाह के संस्थागत मूल्य को स्थिर करता है, बल्कि आधुनिक समय में भी, जहाँ व्यक्ति स्वतन्त्रता की अवधारणा के अन्तर्गत सामाजिक बन्धनों को तुच्छ मान लेता है, वहाँ यह एक पुनर्विचार की माँग करता है: क्या स्वतन्त्रता का अर्थ सामाजिक बोधहीनता भी है? क्या व्यक्तिगत चयन की स्वतन्त्रता समाज में उत्तरदायित्वहीनता की छूट देती है? यदि नहीं, तो विवाह के संदर्भ में कुल, परम्परा और सामाजिक स्तर की उपेक्षा दीर्घकालिक संकट का कारण हो सकती है।