श्लोक ०१-१२

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसङ्कटे ।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ॥ ॥१२॥
रोग की अवस्था, विपत्ति के आगमन, अकाल, शत्रु के संकट, राजदरबार में और श्मशान में—इन सभी स्थानों पर जो साथ खड़ा रहता है, वही सच्चा बान्धव (संबंधी) है।
संबंधों की वास्तविकता उनकी प्रकटता में नहीं, प्रत्युत संकटकालीन स्थैर्य में मापी जाती है। जो व्यक्ति समृद्धि के समय सान्निध्य दर्शाता है, वह केवल अवसरवादी भी हो सकता है। परन्तु जो व्यक्ति रोग, विपत्ति, भूखमरी, शत्रु का संकट, न्यायिक संघर्ष या मृत्यु जैसे कठोर क्षणों में साथ बना रहता है, उसकी निष्ठा केवल सामाजिक नहीं—नैतिक भी है। ‘आतुरे’—रोग की अवस्था केवल शारीरिक पीड़ा नहीं, अपितु मनोबल के पतन का काल भी होती है। इस समय यदि कोई व्यक्ति साथ देता है, तो वह केवल शरीर नहीं, मन की भी चिकित्सा करता है। ‘व्यसने’—यह व्यापक संज्ञा है, जिसमें आर्थिक, सामाजिक या मानसिक कोई भी आपत्ति सम्मिलित हो सकती है। ‘दुर्भिक्षे’—यानी जब अन्न, जल या मूलभूत संसाधनों की ही कमी हो, तब सम्बन्ध स्वार्थवश छूटते देखे गए हैं। परन्तु जो उस समय भी साथ निभाता है, वह संबंध की मर्यादा से आगे बढ़कर मानवीय करुणा का embodiment हो जाता है। ‘शत्रुसङ्कटे’ केवल बाह्य संघर्ष नहीं, कभी-कभी मानहानि या आरोपों की स्थिति भी होती है, जहाँ सामाजिक समर्थन छूट जाता है। जो व्यक्ति तब भी संदेह न करते हुए साथ खड़ा हो, उसका साहस न केवल सम्बंध का प्रमाण होता है, अपितु न्याय का पक्षपोषण भी। ‘राजद्वार’ एक प्रतीक है—राजकीय संघर्ष, न्यायालयी प्रक्रियाएँ, या सत्ता के समक्ष व्यक्ति की विवशता का। वहाँ कोई साथ देने वाला, केवल हितैषी नहीं, संघर्षसहचर भी है। ‘श्मशाने’—जहाँ अधिकांश लोग केवल औपचारिक उपस्थिति हेतु जाते हैं—जो वहाँ आत्मीय भाव से खड़ा हो, उसका संबंध कर्तव्यमात्र नहीं, श्रद्धायुक्त होता है। इस प्रकार, यह धारणा कि संबंध केवल रक्त से निर्धारित होते हैं, यहाँ खंडित होती है। सच्चा संबंध वह है, जो संकट के क्षणों में परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरे। यह कसौटी सामाजिक मान्यता से नहीं, व्यावहारिक सहभागिता से जुड़ी होती है। यथार्थतः, यह एक नैतिक आग्रह है—कि अपने संबंधों की पहचान केवल उत्सवों में न करें, उन्हें विपत्तियों की परीक्षा में परखें। इसी आधार पर समाज में स्थायित्व, विश्वास और परस्पर निष्ठा का निर्माण होता है। यह केवल परखने की कसौटी नहीं, स्वयं को भी मापने का उपकरण है—कि हम किनके श्मशान तक साथ खड़े हो सकते हैं।