श्लोक ०१-१०

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता ।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संस्थितिम् ॥ ०१-१० ॥
जहाँ सामाजिक व्यवहार, भय, लज्जा, शिष्टाचार और त्यागशीलता—ये पाँच न हों, वहाँ स्थायी निवास नहीं करना चाहिए।

मानव जीवन में निवास स्थान का चयन एक ऐसी प्रक्रिया है, जो केवल भौतिक सुविधाओं तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों से गहरे जुड़ा हुआ है। यह निर्णय व्यक्ति के जीवन की दिशा, उसके सामाजिक संबंधों और नैतिक विकास को प्रभावित करता है। एक स्थान का चयन करते समय, उन तत्वों पर विचार करना आवश्यक है, जो समाज को व्यवस्थित, नैतिक और मानवीय बनाते हैं। सामाजिक व्यवहार, भय, लज्जा, शिष्टाचार और त्यागशीलता जैसे गुण न केवल व्यक्ति के चरित्र को परिभाषित करते हैं, बल्कि समाज की संरचना और उसकी स्थिरता को भी आकार देते हैं।

सामाजिक व्यवहार किसी भी समाज की आधारशिला है। यह वह ढांचा है, जो लोगों को एक-दूसरे के साथ संवाद करने, सहयोग करने और सामूहिक रूप से जीवन यापन करने में सक्षम बनाता है। एक स्थान जहाँ सामाजिक व्यवहार का अभाव हो, वहाँ लोग एक-दूसरे से कटे हुए और स्वार्थी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी समाज में लोग एक-दूसरे की सहायता नहीं करते या सामूहिक हितों की उपेक्षा करते हैं, तो वहाँ विश्वास और एकता का अभाव हो सकता है। यह प्रश्न उठता है कि क्या बिना सामाजिक व्यवहार के कोई समाज दीर्घकालिक स्थिरता प्राप्त कर सकता है? यह विचार सामुदायिकता और सामाजिक बंधनों के महत्व को रेखांकित करता है।

भय, इस संदर्भ में, केवल शारीरिक खतरे का भय नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक नियमों का पालन करने का वह भाव है, जो व्यक्ति को अनुचित कार्यों से रोकता है। एक स्थान जहाँ भय का अभाव हो, वहाँ अराजकता और अनैतिकता पनप सकती है। उदाहरण के लिए, यदि लोग कानून या सामाजिक नियमों का उल्लंघन करने से नहीं डरते, तो समाज में अव्यवस्था फैल सकती है। यहाँ भय का अर्थ दमनकारी भय नहीं, बल्कि वह संयम है, जो व्यक्ति को नैतिक पथ पर बनाए रखता है। यह प्रश्न विचारणीय है कि क्या बिना इस नैतिक भय के कोई समाज व्यवस्थित और सुरक्षित रह सकता है? यह विचार नैतिकता और सामाजिक व्यवस्था के बीच गहरे संबंध को उजागर करता है।

लज्जा व्यक्ति के नैतिक चरित्र और सामाजिक संवेदनशीलता का प्रतीक है। यह वह भावना है, जो व्यक्ति को अनुचित या अपमानजनक कार्य करने से रोकती है। एक स्थान जहाँ लज्जा का अभाव हो, वहाँ लोग अपने कार्यों के सामाजिक प्रभावों के प्रति उदासीन हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति अपने अनैतिक व्यवहार पर लज्जित नहीं होता, तो वह समाज में अविश्वास और असम्मान का कारण बन सकता है। यह प्रश्न उठता है कि क्या लज्जा के बिना कोई समाज नैतिकता और सम्मान को बनाए रख सकता है? यह विचार मानव स्वभाव और सामाजिक मूल्यों के बीच संबंध को और अधिक स्पष्ट करता है।

शिष्टाचार समाज में सौहार्द और सम्मान का आधार है। यह वह व्यवहार है, जो लोगों को एक-दूसरे के प्रति विनम्र और सहानुभूतिपूर्ण बनाता है। एक स्थान जहाँ शिष्टाचार का अभाव हो, वहाँ लोग एक-दूसरे के प्रति असंवेदनशील और कठोर हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी समाज में लोग एक-दूसरे के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार नहीं करते, तो वहाँ तनाव और संघर्ष की संभावना बढ़ सकती है। यह प्रश्न विचारणीय है कि क्या शिष्टाचार के बिना कोई समाज सौहार्दपूर्ण और एकजुट रह सकता है? यह विचार सामाजिक संवाद और मानवीय संबंधों के महत्व को रेखांकित करता है।

त्यागशीलता व्यक्ति और समाज के नैतिक और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है। यह वह गुण है, जो व्यक्ति को अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के हित में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। एक स्थान जहाँ त्यागशीलता का अभाव हो, वहाँ लोग स्वार्थी और आत्मकेंद्रित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई समाज केवल व्यक्तिगत लाभ पर केंद्रित हो और सामूहिक हितों की उपेक्षा करे, तो वहाँ एकता और सहयोग की कमी हो सकती है। यह प्रश्न उठता है कि क्या त्यागशीलता के बिना कोई समाज अपने नैतिक और सामाजिक मूल्यों को संरक्षित कर सकता है? यह विचार मानव जीवन में नैतिकता और सामूहिकता के महत्व को और अधिक स्पष्ट करता है।

यह विचार हमें यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि निवास स्थान का चयन केवल एक भौतिक निर्णय नहीं, बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित करती है। एक समाज की समृद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने नागरिकों को सामाजिक व्यवहार, नैतिक भय, लज्जा, शिष्टाचार और त्यागशीलता जैसे गुणों को प्रोत्साहित करने वाला वातावरण प्रदान कर सके। यदि कोई स्थान इन पाँच तत्वों से वंचित है, तो वहाँ निवास करना व्यक्ति के नैतिक और सामाजिक विकास को बाधित कर सकता है। यह प्रश्न उठता है कि क्या एक समाज का दायित्व नहीं है कि वह अपने नागरिकों को ऐसी परिस्थितियाँ प्रदान करे, जो उनके नैतिक और सामाजिक विकास में सहायक हों? यह विचार मानव जीवन में नैतिकता, संतुलन और सामूहिकता के महत्व को रेखांकित करता है।