पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसं वसेत् ॥ ॥९॥
यह सूत्र जीवन की भौतिक, सामाजिक, नैतिक और स्वास्थ्य-संबंधी आवश्यकताओं का समेकित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। जिन पाँच तत्त्वों का उल्लेख हुआ है — धनिक, श्रोत्रिय, राजा, नदी और वैद्य — वे किसी भी समाज की स्थिरता, समृद्धि और सुरक्षा के स्तंभ हैं।
धनिक उस स्थान का प्रतिनिधि है जहाँ आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता हो। एक समाज तभी सक्रिय रह सकता है जब वहाँ पूंजी प्रवाह, व्यापारिक अवसर और उद्यमिता की संभावना हो। यदि कोई धनिक नहीं है, तो यह संकेत है कि उस स्थान में आर्थिक स्थिरता नहीं है।
श्रोत्रिय वे व्यक्ति हैं जो वेदों और शास्त्रों का ज्ञान रखते हैं तथा समाज को नैतिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की उपस्थिति किसी स्थान को केवल ज्ञान-समृद्ध ही नहीं बनाती, बल्कि वहाँ धर्म, मर्यादा और संस्कृति की रक्षा भी होती है। यदि श्रोत्रिय नहीं हैं, तो समाज दिशाहीन हो सकता है।
राजा यानी शासक या शासन व्यवस्था — सामाजिक अनुशासन और न्याय के लिए आवश्यक है। बिना शासन या सत्ता की उपस्थिति के स्थान पर अराजकता, अन्याय और असुरक्षा फैल सकती है। इसलिए किसी भी स्थान की सुशासनात्मक संरचना एक अनिवार्य शर्त मानी गई है।
नदी जल का स्रोत होने के कारण जीवन का आधार है। जल की उपलब्धता कृषि, स्वच्छता, जीवन-निर्वाह और सांस्कृतिक अनुष्ठानों के लिए अनिवार्य है। नदी केवल एक भौगोलिक तत्व नहीं, बल्कि सभ्यता का पोषक आधार होती है। नदी के बिना कोई भी स्थान दीर्घकालीन जीवन के लिए उपयुक्त नहीं।
वैद्य चिकित्सा और स्वास्थ्य-सुरक्षा का प्रतिनिधि है। रोगों की रोकथाम और उपचार के लिए चिकित्सक का होना अनिवार्य है। वैद्य की अनुपस्थिति एक ऐसे समाज की कल्पना है जो किसी भी बीमारी के सामने असहाय और असुरक्षित हो।
इस नीति का मूल सार यह है कि यदि किसी स्थान पर ये पाँच तत्व नहीं हैं, तो वहाँ निवास करना आत्मघाती हो सकता है। यह सूत्र हमें स्थान-चयन के लिए केवल भौगोलिक या आर्थिक दृष्टिकोण नहीं, बल्कि एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने का संकेत देता है। व्यक्ति को ऐसा स्थान चुनना चाहिए जहाँ जीवन के हर पक्ष की सम्यक् पूर्ति हो — धन, धर्म, शासन, जल और स्वास्थ्य।
यह श्लोक सामाजिक संरचना की एक न्यूनतम कसौटी निर्धारित करता है — जहाँ से एक सभ्य, समृद्ध और संतुलित समाज का आरंभ हो सकता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि नीति केवल नीतिपरक विचार नहीं, बल्कि ठोस सामाजिक संरचना और मानवकल्याण की व्यावहारिक रूपरेखा भी है।