श्लोक ०१-१६

Kautilya Arthashastra by Acharya Chankya
उद्वृत्तमन्त्रो दूतप्रणिधिः अमात्यसम्पदा उपेतो निसृष्टार्थः पादगुणहीनः परिमितार्थः अर्धगुणहीनः शासनहरः सुप्रतिविहितयानवाहनपुरुषपरिवापः प्रतिष्ठेत शासनं एवं वाच्यः परः, स वक्ष्यत्येवं, तस्य इदं प्रतिवाक्यं, एवं अतिसन्धातव्यं, इत्यधीयानो गच्छेत् अटव्य्ऽन्तपालपुरराष्ट्रमुख्यैश्च प्रतिसंसर्गं गच्छेत् अनीकस्थानयुद्धप्रतिग्रहापसारभूमीरात्मनः परस्य चावेक्षेत दुर्गराष्ट्रप्रमाणं सारवृत्तिगुप्तिच्छिद्राणि च उपलभेत पराधिष्ठानं अनुज्ञातः प्रविशेत् शासनं च यथा उक्तं ब्रूयात्, प्राणाबाधेऽपि दृष्टे परस्य वाचि वक्त्रे दृष्ट्यां च प्रसादं वाक्यपूजनं इष्टपरिप्रश्नं गुणकथासङ्गं आसन्नं आसनं सत्कारं इष्टेषु स्मरणं विश्वासगमनं च लक्षयेत् तुष्टस्य, विपरीतं अतुष्टस्य तं ब्रूयात् - दूतमुखा हि राजानः, त्वं चान्ये च तस्माद् उद्यतेष्वपि शस्त्रेषु यथा उक्तं वक्तारो दूताः तेषां अन्तावसायिनोऽप्यवध्याः, किं अङ्ग पुनर्ब्राह्मणाः परस्य एतद् वाक्यम् एष दूतधर्मः इति वसेद् अविसृष्टः पूजया न उत्सिक्तः परेषु बलित्वं न मन्येत वाक्यं अनिष्टं सहेत स्त्रियः पानं च वर्जयेत् एकः शयीत सुप्तमत्तयोर्हि भावज्ञानं दृष्टम् कृत्यपक्ष उपजापं अकृत्यपक्षे गूढप्रणिधानं रागापरागौ भर्तरि रन्ध्रं च प्रकृतीनां तापसवैदेहकव्यञ्जनाभ्यां उपलभेत, तयोरन्तेवासिभिश्चिकित्सकपाषण्डव्यञ्जन उभयवेतनैर्वा तेषां असम्भाषायां याचकमत्त उन्मत्तसुप्तप्रलापैः पुण्यस्थानदेवगृहचित्रलेख्यसंज्ञाभिर्वा चारं उपलभेत उपलब्धस्य उपजापं उपेयात् परेण च उक्तः स्वासां प्रकृतीनां प्रमाणं नाचक्षीत सर्वं वेद भवान् इति ब्रूयात्, कार्यसिद्धिकरं वा कार्यस्यासिद्धावुपरुध्यमानः तर्कयेत् - किं भर्तुर्मे व्यसनं आसन्नं पश्यन्, स्वं वा व्यसनं प्रतिकर्तुकामः, पार्ष्णिग्राहं आसारं अन्तःकोपं आटविकं वा समुत्थापयितुकामः, मित्रं आक्रन्दं वा व्याघातयितुकामः, स्वं वा परतो विग्रहं अन्तःकोपं आटविकं वा प्रतिकर्तुकामः, संसिद्धं वा मे भर्तुर्यात्राकालं अभिहन्तुकामः, सस्यपण्यकुप्यसङ्ग्रहं दुर्गकर्म बलसमुद्दानं वा कर्तुकामः, स्वसैन्यानां वा व्यायामस्य देशकालावाकाङ्क्षमाणः, परिभवप्रमादाभ्यां वा, संसर्गानुबन्धार्थी वा, मां उपरुणद्धि इति ज्ञात्वा वसेद् अपसरेद् वा प्रयोजनं इष्टं अवेक्षेत वा शासनं अनिष्टं उक्त्वा बन्धवधभयाद् अविसृष्टोऽप्यपगच्छेत्, अन्यथा नियम्येत प्रेषणं सन्धिपालत्वं प्रतापो मित्रसङ्ग्रहः । उपजापः सुहृद्भेदो गूढदण्डातिसारणम् बन्धुरत्नापहरणं चारज्ञानं पराक्रमः । समाधिमोक्षो दूतस्य कर्म योगस्य चाश्रयः स्वदूतैः कारयेद् एतत् परदूतांश्च रक्षयेत् । प्रतिदूतापसर्पाभ्यां दृश्यादृश्यैश्च रक्षिभिः ॥१६॥
जो मंत्र की गोपनीयता भंग करता है, वह दूत नियुक्त किया जाता है। मंत्रियों की संपदा से युक्त, पूर्ण अधिकार प्राप्त दूत, जो गुणों से रहित है, उसे सीमित अधिकार दिए जाते हैं। जो आधे गुणों से रहित है, वह शासन लेने वाला होता है। अच्छी तरह से सुसज्जित वाहनों और सेवकों से युक्त दूत को नियुक्त किया जाता है। वह पराए क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति प्राप्त कर, जैसा कहा गया है, शासन का संदेश देता है, भले ही प्राणों का संकट हो। वह पराए की वाणी, चेहरे और नजरों में संतुष्टि या असंतुष्टि के संकेत देखता है। वह कहता है—राजा दूतों के माध्यम से बोलते हैं, तुम और अन्य सभी। इसलिए, भले ही हथियार उठाए गए हों, दूत जैसा कहा गया है, वैसा ही बोलते हैं। जो दूत अंत तक अपने कर्तव्य का पालन करते हैं, वे अवध्य हैं, फिर ब्राह्मणों की तो बात ही क्या! यह दूत का धर्म है। वह बिना छोड़े सम्मान के साथ रहे, पर बल का अभिमान न करे। अप्रिय वचन सहन करे। स्त्रियों और शराब से बचे। अकेले सोए। क्योंकि सोए हुए या नशे में व्यक्ति की भावनाओं को समझा जाता है। कार्य पक्ष के लोगों को प्रेरित करे, और अकार्य पक्ष में गुप्त निगरानी करे। स्वामी और प्रजा के प्रति राग और विराग, और प्रजा की कमजोरियों को तपस्वी, वैदिक, और अन्य भेषों में, या उनके शिष्यों, चिकित्सकों, पाखंडियों, या दोनों पक्षों के भेदुओं के माध्यम से जान ले। उनकी बातचीत न होने पर भिखारी, नशे में धुत्त, पागल, या सोए हुए के प्रलाप, पवित्र स्थानों, मंदिरों, चित्रों, और संकेतों के माध्यम से गुप्तचर की जानकारी प्राप्त करे। प्राप्त जानकारी के आधार पर प्रेरणा दे। पराए के कहने पर अपनी प्रजा की स्थिति न बताए। ‘आप सब कुछ जानते हैं’ या कार्य की सिद्धि के लिए उपयोगी बात कहे। यदि कार्य असफल हो और उसे रोका जाए, तो वह सोचे—क्या मेरे स्वामी को कोई संकट दिख रहा है, या वह अपनी हानि का प्रतिकार करना चाहता है, या कोई शत्रु, आंतरिक विद्रोह, या जंगली को भड़काना चाहता है, या कोई मित्र या सहायता को नष्ट करना चाहता है, या वह स्वयं विद्रोह या आंतरिक विद्रोह का प्रतिकार करना चाहता है, या मेरे स्वामी की यात्रा के समय को नष्ट करना चाहता है, या फसल, व्यापार, वन संपदा, किलेबंदी, या बल संग्रह करना चाहता है, या अपनी सेना के अभ्यास के लिए समय और स्थान की प्रतीक्षा कर रहा है, या अपमान और लापरवाही से, या संबंध और बंधन की इच्छा से मुझे रोक रहा है। यह जानकर वह रहे, चले जाए, या इच्छित उद्देश्य देखे। यदि अप्रिय शासन का संदेश दे और बंधन या मृत्यु का भय हो, तो बिना छोड़े चला जाए, अन्यथा वह नियंत्रित हो जाएगा। प्रेषण, संधि का पालन, प्रताप, मित्र संग्रह, प्रेरणा, मित्रों में फूट डालना, गुप्त दंड, निर्वासन, बंधुओं और रत्नों का अपहरण, गुप्तचर की जानकारी, पराक्रम, और समाधि से मुक्ति—ये दूत के कार्य और योग का आधार हैं। अपने दूतों से यह कार्य कराए और पराए दूतों की रक्षा करे। प्रतिदूतों और गुप्तचरों, दृश्य और अदृश्य रक्षकों के माध्यम से।

शासन की कला और दूत की भूमिका

शासन का ताना-बाना समाज के विभिन्न तत्वों को एक सामंजस्यपूर्ण ढांचे में बुनने की कला है, जिसमें शक्ति, बुद्धिमत्ता, और नैतिकता का संतुलन अपरिहार्य है। यह न केवल नियमों को लागू करने या दंड के भय से समाज को नियंत्रित करने की प्रक्रिया है, बल्कि यह एक सूक्ष्म और गहन कला है, जो समाज के विभिन्न स्तरों—राजनैतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक—के बीच संतुलन स्थापित करती है। शासक का दायित्व समाज की गतिशीलता को समझना, असंतोष के मूल स्रोतों को पहचानना, और उन्हें संबोधित करने के लिए ऐसी रणनीतियों का उपयोग करना है, जो न केवल बल पर आधारित हों, बल्कि बुद्धि, दूरदर्शिता, और सामाजिक संवेदनशीलता पर भी निर्भर हों। इस प्रक्रिया में दूतों की भूमिका एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जो शासक और पराए क्षेत्रों के बीच संवाद का सेतु बनते हैं, सूचनाओं का संग्रह करते हैं, और समाज की नब्ज को समझने में सहायता करते हैं।

दूत की भूमिका और दायित्व

दूत न केवल संदेशवाहक होते हैं, बल्कि वे शासक के लिए आंख और कान का काम करते हैं। पराए क्षेत्रों में जाकर वे वहां की सामाजिक, सैन्य, और आर्थिक स्थिति का आकलन करते हैं, और शासक के हितों को सुरक्षित रखने के लिए रणनीतिक सूचनाएं एकत्र करते हैं। यह कार्य अत्यंत सूक्ष्मता और सावधानी की मांग करता है। उदाहरण के लिए, एक दूत को पराए क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले वहां के लोगों की भावनाओं, उनकी शक्तियों और कमजोरियों, और उनकी आंतरिक संरचना में छिपे छिद्रों को समझना होता है। यह जानकारी शासक को पराए क्षेत्र की स्थिति का सटीक चित्र प्रस्तुत करती है, जिससे वह अपनी रणनीतियों को तदनुसार ढाल सकता है। दूत का यह कार्य केवल सूचना संग्रह तक सीमित नहीं है; वह पराए क्षेत्र में शासक के हितों को बढ़ावा देने के लिए साम, दान, भेद, और दंड जैसे साधनों का उपयोग भी करता है।

दूत का चयन शासन की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। एक दूत में न केवल संदेश को सटीकता से पहुंचाने की क्षमता होनी चाहिए, बल्कि उसे पराए क्षेत्र की जटिल परिस्थितियों को समझने और उनमें कार्य करने की बुद्धिमत्ता भी होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई दूत पराए क्षेत्र में जाकर वहां के लोगों की भावनाओं को गलत समझता है या अनुचित व्यवहार करता है, तो वह शासक के हितों को हानि पहुंचा सकता है। इसलिए, दूत को संयम, विवेक, और नैतिकता के साथ कार्य करना होता है। उसे अप्रिय वचनों को सहन करने, अनैतिक व्यवहार से बचने, और अपनी निष्ठा को बनाए रखने की क्षमता रखनी होती है। यह संयम न केवल दूत की व्यक्तिगत विश्वसनीयता को बनाए रखता है, बल्कि शासक की प्रतिष्ठा को भी सुरक्षित रखता है।

शासक और प्रजा के बीच सामाजिक अनुबंध

शासक और प्रजा के बीच का संबंध एक सामाजिक अनुबंध की तरह है, जिसमें प्रजा अपनी सुरक्षा और समृद्धि के लिए शासक को संसाधन और निष्ठा प्रदान करती है। बदले में, शासक प्रजा की रक्षा और उनके कल्याण का दायित्व लेता है। यह अनुबंध तभी प्रभावी होता है, जब दोनों पक्ष अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाते हैं। यदि शासक प्रजा की अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रहता है, तो यह अनुबंध कमजोर पड़ सकता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। दूत इस अनुबंध को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे शासक को प्रजा की भावनाओं और आवश्यकताओं की सटीक जानकारी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र में असंतोष फैल रहा है, तो दूत इसकी जानकारी शासक को दे सकता है, जिससे शासक समय रहते उपयुक्त कदम उठा सके।

यह अनुबंध केवल शासक और प्रजा के बीच ही नहीं, बल्कि शासक और पराए क्षेत्रों के बीच भी महत्वपूर्ण है। दूत इस अनुबंध को बनाए रखने में मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं। वे पराए क्षेत्रों में शासक के हितों को प्रस्तुत करते हैं और साथ ही वहां की स्थिति को समझकर शासक को सूचित करते हैं। यह दोतरफा संवाद शासक को पराए क्षेत्रों के साथ संबंधों को मजबूत करने और संभावित संघर्षों को टालने में सहायता करता है। उदाहरण के लिए, यदि पराए क्षेत्र में कोई शासक अपने सैन्य बल को बढ़ाने की योजना बना रहा है, तो दूत इसकी जानकारी शासक को दे सकता है, जिससे शासक अपनी रणनीति को तदनुसार समायोजित कर सके।

रणनीति और सूचना संग्रह

शासन में सूचना संग्रह एक महत्वपूर्ण रणनीति है। दूत न केवल पराए क्षेत्रों की सामान्य स्थिति का आकलन करते हैं, बल्कि वे वहां के लोगों की भावनाओं, उनकी कमजोरियों, और उनकी गुप्त योजनाओं को भी समझते हैं। यह सूचना शासक को समाज के विभिन्न स्तरों पर होने वाली गतिविधियों को समझने में सहायता करती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई समूह शासक के प्रति विद्वेष फैलाने का प्रयास कर रहा है, तो दूत इसकी जानकारी शासक को दे सकता है, जिससे शासक समय रहते कार्रवाई कर सके। यह कार्रवाई हमेशा दंडात्मक नहीं होती; कभी-कभी यह सौम्यता, समझौते, या उदारता के रूप में हो सकती है।

दूतों को पराए क्षेत्र में सूचना संग्रह के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग करना पड़ता है। वे तपस्वी, व्यापारी, चिकित्सक, या अन्य भेषों में कार्य कर सकते हैं, ताकि लोगों की भावनाओं और योजनाओं को समझ सकें। यह कार्य अत्यंत गोपनीयता और सावधानी की मांग करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई दूत पराए क्षेत्र में भिखारी या पागल के भेष में सूचना एकत्र करता है, तो वह लोगों की सच्ची भावनाओं को समझ सकता है, क्योंकि लोग ऐसे व्यक्तियों के सामने अपनी बातें खुलकर कहते हैं। यह सूचना शासक को पराए क्षेत्र की वास्तविक स्थिति का आकलन करने में सहायता करती है।

भेद नीति और सामाजिक संतुलन

शासन में भेद नीति का उपयोग एक महत्वपूर्ण रणनीति है। समाज में विभिन्न समूहों के बीच मतभेद स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होते हैं। ये मतभेद सामाजिक, आर्थिक, या क्षेत्रीय हो सकते हैं। दूत इन मतभेदों को समझकर शासक को ऐसी रणनीतियों की सलाह दे सकते हैं, जो इन मतभेदों को नियंत्रित करें। उदाहरण के लिए, यदि दो समुदायों के बीच तनाव है, तो दूत शासक को सलाह दे सकता है कि दोनों को अलग-अलग लाभ देकर उन्हें शांत किया जाए। यह रणनीति न केवल संभावित विद्रोह को रोकती है, बल्कि समाज के विभिन्न हिस्सों को एकजुट रखने में भी मदद करती है।

भेद नीति का उपयोग केवल पराए क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि अपने क्षेत्र में भी किया जा सकता है। यदि शासक के अपने क्षेत्र में कोई समूह असंतुष्ट है, तो दूत इस असंतोष के कारणों को समझकर शासक को सलाह दे सकता है। यह सलाह साम, दान, या भेद नीति के रूप में हो सकती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई समूह शासक के प्रति असंतुष्ट है, क्योंकि उसे लगता है कि उसका सम्मान नहीं किया जा रहा, तो दूत शासक को सलाह दे सकता है कि उस समूह को सम्मान और मान्यता देकर उनकी निष्ठा प्राप्त की जाए। यह रणनीति समाज में संतुलन बनाए रखने और संभावित विद्रोह को रोकने में सहायक होती है।

दूत का संयम और नैतिकता

दूतों को पराए क्षेत्र में अत्यंत संयम और नैतिकता के साथ कार्य करना पड़ता है। उन्हें अप्रिय वचनों को सहन करने, अनुचित व्यवहार से बचने, और अपनी निष्ठा को बनाए रखने की आवश्यकता होती है। यह संयम और बुद्धिमत्ता दूतों को शासक के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ कार्य करने में सक्षम बनाती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई दूत पराए क्षेत्र में अनुचित व्यवहार करता है, जैसे शराब या अनैतिक संबंधों में लिप्त हो जाता है, तो वह शासक के विश्वास को तोड़ सकता है, जिससे शासन की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है।

दूत का संयम केवल व्यक्तिगत नैतिकता तक सीमित नहीं है; यह शासक के प्रति उसकी निष्ठा और विश्वसनीयता को भी दर्शाता है। एक दूत को हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन करना होता है, भले ही उसे प्राणों का संकट हो। यह निष्ठा और समर्पण दूत को शासक के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति बनाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई दूत पराए क्षेत्र में शासक का संदेश पहुंचाता है और उसे वहां बंधन या मृत्यु का भय होता है, तो उसे अपनी निष्ठा को बनाए रखते हुए उचित निर्णय लेना होता है। यह निर्णय शासक के हितों को सर्वोपरि रखते हुए लिया जाता है।

शक्ति और बुद्धि का संतुलन

शासन की कला में यह समझ निहित है कि शक्ति का उपयोग केवल बल द्वारा नहीं, बल्कि बुद्धि, सूझबूझ, और नैतिकता के साथ किया जाना चाहिए। शासक का असली कौशल इस बात में है कि वह समाज के विभिन्न तत्वों—चाहे वे संतुष्ट हों या असंतुष्ट, शक्तिशाली हों या कमजोर—को एक सामंजस्यपूर्ण ढांचे में बांध सके। यह प्रक्रिया न केवल शासक की बुद्धिमत्ता को दर्शाती है, बल्कि समाज की दीर्घकालिक स्थिरता को भी सुनिश्चित करती है।

दूत इस प्रक्रिया में शासक के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण हैं। वे न केवल सूचनाओं का संग्रह करते हैं, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संतुलन बनाने में भी सहायता करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई समूह शासक के प्रति असंतुष्ट है, तो दूत इस असंतोष के कारणों को समझकर शासक को सलाह दे सकता है कि उसे सौम्यता, उदारता, या भेद नीति का उपयोग करना चाहिए। यह रणनीति समाज में संतुलन बनाए रखने और संभावित विद्रोह को रोकने में सहायक होती है।

आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता

शासन की यह कला और दूतों की भूमिका आधुनिक संदर्भ में भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी प्राचीन काल में थी। आधुनिक राजनैतिक और कूटनीतिक परिदृश्य में, दूतों की भूमिका राजदूतों, गुप्तचरों, और मध्यस्थों के रूप में देखी जा सकती है। ये व्यक्ति न केवल अपने देश के हितों को बढ़ावा देते हैं, बल्कि अन्य देशों की स्थिति का आकलन करके अपने देश को सूचित करते हैं। उदाहरण के लिए, एक राजदूत किसी अन्य देश में जाकर वहां की आर्थिक, सामाजिक, और सैन्य स्थिति का आकलन करता है, और अपने देश को ऐसी रणनीतियों की सलाह देता है, जो उसके हितों को सुरक्षित रखें।

आधुनिक संदर्भ में, सूचना संग्रह और विश्लेषण की प्रक्रिया और भी जटिल हो गई है। तकनीकी प्रगति के साथ, गुप्तचर अब केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि डिजिटल और साइबर स्तर पर भी सूचनाएं एकत्र करते हैं। यह सूचना शासकों को न केवल आंतरिक स्थिरता बनाए रखने में, बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत करने में भी सहायता करती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई देश अपने पड़ोसी देश की सैन्य तैयारियों की जानकारी प्राप्त करता है, तो वह अपनी रक्षा रणनीति को तदनुसार समायोजित कर सकता है।

क्या यह संतुलन और रणनीति आधुनिक शासन प्रणालियों में उतनी ही प्रभावी हो सकती है, जितनी प्राचीन काल में थी? यह प्रश्न आज भी चिंतन का विषय है। शासन की कला में शक्ति और बुद्धि का संतुलन, और दूतों की भूमिका, समाज को एकजुट और स्थिर रखने में महत्वपूर्ण है। यह प्रक्रिया न केवल शासक की बुद्धिमत्ता को दर्शाती है, बल्कि समाज की दीर्घकालिक समृद्धि और स्थिरता को भी सुनिश्चित करती है। क्या आधुनिक विश्व में, जहां तकनीक और वैश्वीकरण ने शासन के स्वरूप को बदल दिया है, यह प्राचीन ज्ञान अभी भी उतना ही प्रासंगिक है? यह विचारणीय है कि क्या हम इन सिद्धांतों को आज के जटिल वैश्विक परिदृश्य में अनुकूलित कर सकते हैं, ताकि समाज में संतुलन और स्थिरता बनी रहे।