भोजनं च पराधीनं तिस्रः पुंसां विडम्बनाः ॥ ०८-०९॥
मानव जीवन का अंतिम पड़ाव – वृद्धावस्था – एक ऐसा चरण है जहाँ व्यक्ति भौतिक संसाधनों से अधिक सम्मान, आत्मनिर्भरता और मानसिक संतुलन की अपेक्षा करता है। परंतु जब इस अवस्था में पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो जीवन से संवाद का सबसे निजी और गहन माध्यम समाप्त हो जाता है। पत्नी केवल एक सहचरी नहीं होती, वह उस उम्र में एकमात्र वह व्यक्ति होती है जो निःस्वार्थ भाव से सेवा करती है, साथ निभाती है, और मनोबल को स्थिर रखती है। उसकी अनुपस्थिति वृद्ध को न केवल अकेला बनाती है, बल्कि मानसिक और सामाजिक दृष्टि से भी उसे एकदम नग्न अवस्था में छोड़ देती है।
धन, जो जीवनभर की कमाई और परिश्रम का परिणाम होता है, यदि बुढ़ापे में अपने नियंत्रण से निकलकर संबंधियों के हाथों में चला जाए, तो वृद्ध व्यक्ति केवल आर्थिक रूप से निर्बल ही नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान से भी वंचित हो जाता है। ऐसी अवस्था में वह अपने ही परिश्रम के फलों पर अधिकार नहीं रख पाता। संबंधी सहायक होने के बजाय नियंत्रक बन जाते हैं, और वृद्ध का अस्तित्व धीरे-धीरे एक 'अतिथि' में बदल जाता है – जिसका अधिकार कम और बोझ अधिक समझा जाता है।
पराधीन भोजन, अर्थात दूसरों पर भोजन की निर्भरता, व्यक्ति की गरिमा को सबसे अधिक आहत करती है। जब कोई पुरुष अपने हाथों से भोजन न कमा सके, न बना सके, और न ही स्वतंत्र रूप से तय कर सके कि क्या खाए और कब खाए – तब उसकी स्वतंत्रता की अंतिम डोर भी टूट जाती है। यह निर्भरता केवल शारीरिक नहीं, मानसिक और सामाजिक अपमान का प्रतीक बन जाती है। व्यक्ति तब भोजन के लिए आज्ञा का प्रतीक्षारत रहता है, और उसकी आत्मा में एक स्थायी हीनता का भाव जन्म लेता है।
इन तीन अवस्थाओं का सम्मिलित प्रभाव यह होता है कि वृद्ध पुरुष जीवन के सबसे नाजुक मोड़ पर अपनी गरिमा, नियंत्रण और अस्तित्व के मूल आधारों से वंचित हो जाता है। यह केवल एक सामाजिक विडंबना नहीं, बल्कि एक सभ्यता की परीक्षा है — कि वह अपने बुज़ुर्गों को किस दृष्टि से देखती है। क्या वे केवल उपयोग के उपकरण थे जो अब निष्प्रयोज्य हो गए, या वे ज्ञान, अनुभव और संस्कृति के जीवित स्रोत हैं जिनका सम्मान अनिवार्य है?
यह चिंतन हमें यह समझने को बाध्य करता है कि वृद्धावस्था में सम्मान और आत्मनिर्भरता बनाए रखना एक सामाजिक उत्तरदायित्व है। ऐसे वृद्धों की स्थिति एक दर्पण की तरह है, जिसमें समाज अपने नैतिक अधोपतन को देख सकता है। पत्नी, संपत्ति और भोजन — ये केवल वस्तुएँ नहीं, बल्कि व्यक्ति की पहचान, गरिमा और स्वतंत्रता के स्तंभ हैं, जो यदि वृद्धावस्था में डगमगाएँ, तो पूरे जीवन की अर्थवत्ता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।