विद्यया लभते सर्वं विद्या सर्वत्र पूज्यते ॥ ०८-२०॥
ज्ञान की महत्ता केवल सूचना या तथ्यों के संग्रह तक सीमित नहीं रह जाती, बल्कि वह समाज और व्यक्तित्व के हर क्षेत्र में सम्मान और आदर का स्रोत बनती है। ज्ञानी व्यक्ति को उसके विवेक, बुद्धि और समझ के कारण न केवल लोक में प्रशंसा मिलती है, बल्कि उसकी उपस्थिति से हर स्थान पर सम्मान का वातावरण निर्मित होता है।
ज्ञान की शक्ति व्यापक है—यह केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं देती, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक स्तर पर भी उसकी प्रतिष्ठा और प्रभाव साफ झलकता है। विद्या से व्यक्ति हर प्रकार की वस्तु, साधन या सफलता प्राप्त करता है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में आवश्यक होती हैं। यही विद्या समाज में पूज्य होती है क्योंकि यह ज्ञान और सम्मान दोनों का आधार है।
इस संदर्भ में, विद्या और ज्ञानी व्यक्ति का महत्व स्पष्ट होता है। विद्या के बिना उपलब्धियां अस्थायी और अधूरी रह जाती हैं, जबकि विद्या के साथ प्राप्त प्रत्येक वस्तु और सम्मान स्थायी और सार्थक हो जाता है। विद्या का सम्मान इसलिए भी होता है क्योंकि वह मनुष्य के चरित्र, आचरण, और निर्णयशक्ति को धार देती है, जिससे वह समाज में आदर्श स्थापित करता है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि विद्या न केवल बाहरी उपकरणों या सामग्री की प्राप्ति का माध्यम है, बल्कि वह आंतरिक रूप से मन और बुद्धि का विकास करती है। इस विकास से व्यक्ति अपने आसपास के वातावरण में सुधार करता है, ज्ञान के कारण वह न केवल स्वयं प्रगति करता है, बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनता है।
समाज में विद्वान की प्रशंसा और पूज्यता से यह स्पष्ट होता है कि ज्ञान को सर्वोच्च मान्यता प्राप्त है। यह ज्ञान समाज को आगे बढ़ाने, समस्याओं का समाधान करने और जीवन को बेहतर बनाने में सहायक होता है। इसलिए, विद्या न केवल साधन है, बल्कि सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक भी है।
यह दृष्टिकोण यह भी इंगित करता है कि ज्ञान और विद्या का प्रभाव केवल भौतिक स्तर तक सीमित नहीं, बल्कि उसका आध्यात्मिक और नैतिक आयाम भी है, जो मनुष्य को श्रेष्ठ और सम्मानित बनाता है। इसीलिए, ज्ञान और विद्या का आदर एवं सम्मान हर जगह समान रूप से मिलता है, जो मानव जीवन की सर्वोच्च मूल्यवत्ता को दर्शाता है।