श्लोक ०८-१६

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
निर्गुणस्य हतं रूपं दुःशीलस्य हतं कुलम् ।
असिद्धस्य हता विद्या ह्यभोगेन हतं धनम् ॥ ॥८-१६॥
जिस व्यक्ति में गुण नहीं होते उसका रूप नष्ट है, जिसका आचरण दूषित है उसका कुल नष्ट है, जिसमें सिद्धि नहीं है उसकी विद्या नष्ट है, और जिसका धन उपभोग में नहीं आता वह धन नष्ट है।

गुणवत्ता ही किसी वस्तु या व्यक्ति का वास्तविक मूल्य तय करती है। बाहरी सौंदर्य, वंश परंपरा, ज्ञान या संपत्ति, यदि आंतरिक या उपयोगी गुणों से रहित हो, तो उनका कोई स्थायी मूल्य नहीं रह जाता। रूप का आकर्षण तब तक ही है जब तक उसमें व्यवहार, विनय, और गुणों की संगति हो। निर्गुण सौंदर्य केवल एक छलावा है, जो न प्रशंसा के योग्य है, न उपयोगिता के।

कुल की प्रतिष्ठा भी व्यक्ति के आचरण से बनती है। कुल या वंश स्वयं में कोई उपलब्धि नहीं है, वह केवल सामाजिक स्मृति का एक अंश है। यदि उसमें जन्म लेने वाला व्यक्ति ही अशील और दूषित व्यवहार का हो, तो वह कुल की मर्यादा को भंग कर देता है। कुल की गरिमा आचरण से सुरक्षित रहती है, केवल वंशावली से नहीं।

विद्या का मूल्य केवल उसकी उपस्थिति में नहीं, बल्कि उसकी सिद्धि में है। विद्या जो व्यवहार में न उतरे, जो किसी प्रकार की साधना, दक्षता या उपयोग में न आए, वह निष्प्राण होती है। ज्ञानी कहलाने मात्र से व्यक्ति पूज्य नहीं होता; जब तक वह ज्ञान किसी स्वरूप में उपयोग या सेवा में न आए, वह निष्फल है। इस ‘सिद्धि’ में निरंतर अभ्यास, अनुभव और परिणाम का समावेश होता है।

धन, यदि उपभोग या सदुपयोग में न लाया जाए, तो वह व्यर्थ है। वह न तो समाज का भला करता है, न स्वयं धारणकर्ता का। संग्रह या संचय की प्रवृत्ति, यदि कुप्रयुक्त हो, तो वही धन अंततः विनाश का कारण बनता है। जिस प्रकार खाद्य को संग्रहित करने पर वह सड़ सकता है, उसी प्रकार उपयोगहीन धन अपनी उपयोगिता खो देता है। भोग से तात्पर्य केवल ऐंद्रिक सुख नहीं, बल्कि उस धन का सद्व्यवहार, परोपकार, और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति है।

यह विवेचन उस बौद्धिक दृष्टिकोण को उजागर करता है जिसमें किसी भी वस्तु का मूल्य केवल उसकी उपस्थिति नहीं, बल्कि उसमें निहित सार्थकता, आचरण, और उपयोगिता से मापा जाता है। इस मूल्यबोध के बिना व्यक्ति केवल बाह्य उपलब्धियों में ही उलझा रहता है और जीवन का सत्व खो बैठता है। मूल्यवत्ता, न केवल किसी वस्तु की सार्थकता को प्रमाणित करती है, बल्कि व्यक्ति के चरित्र और निर्णयों की दिशा भी निर्धारित करती है।