श्लोक ०७-०८

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
हस्ती अङ्कुशमात्रेण वाजी हस्तेन ताड्यते ।
श‍ृङ्गी लगुडहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जनः ॥ ०७-०८
हाथी अंकुश मात्र से, घोड़ा हाथ से, सींगवाला डंडे से, और दुष्ट तलवार से वश में आता है।

यह श्लोक आचार्य चाणक्य द्वारा दुर्जन व्यक्ति के स्वभाव और उससे निपटने के उपाय पर गहरा दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह नीति के उस सिद्धांत को दर्शाता है जिसमें प्रत्येक जीव या व्यक्ति की प्रवृत्ति के अनुरूप ही उससे व्यवहार करना चाहिए।

प्रथम चरण में 'हस्ती अङ्कुशमात्रेण' कहा गया है — इसका अर्थ है कि हाथी जैसे विशाल और बलशाली जीव को नियंत्रित करने के लिए केवल एक छोटा सा अङ्कुश (लोहे की नोंक वाला उपकरण) ही पर्याप्त होता है। यह दृष्टांत दिखाता है कि बुद्धिमत्ता और युक्ति से शक्तिशाली को भी वश में किया जा सकता है।

दूसरे चरण में 'वाजी हस्तेन ताड्यते' — घोड़े को हाथ से हल्की मार से साधा जा सकता है। इसका तात्पर्य है कि संवेदनशील और तेज प्रवृत्ति के व्यक्ति को कठोर साधनों की नहीं, बल्कि सूक्ष्म और नियंत्रित अनुशासन की आवश्यकता होती है।

'श‍ृङ्गी लगुडहस्तेन' — सींगवाले पशु जैसे बैल या सांड को नियंत्रण में लाने के लिए डंडे (लगुड) का उपयोग करना पड़ता है। यह वर्ग ऐसे व्यक्तियों का प्रतीक है जो स्वभाव से आक्रामक हैं, जिन पर सख्ती जरूरी होती है।

और अंत में आता है 'खड्गहस्तेन दुर्जनः' — दुष्ट व्यक्ति को केवल तलवार के बल से ही वश में किया जा सकता है। यहाँ 'खड्ग' केवल शस्त्र का नहीं बल्कि कठोर नीति, अनुशासन और निर्णायक उपायों का प्रतीक है। चाणक्य यह स्पष्ट करते हैं कि सज्जनों और दुर्जनों के साथ एक समान व्यवहार नहीं किया जा सकता। जहाँ सज्जनता, संवाद और नैतिकता काम करते हैं, वहीं दुर्जनता के सामने कठोर और निर्णायक नीति आवश्यक होती है।

यह नीति वर्तमान समय में भी अत्यंत प्रासंगिक है — चाहे वह प्रशासन हो, कूटनीति, न्याय या व्यक्तिगत जीवन। यह सिद्धांत सिखाता है कि सभी के साथ एक ही उपाय कारगर नहीं होता; परिस्थितियों और व्यक्तित्वों के अनुसार नीति और व्यवहार में भिन्नता आवश्यक है। यही यथार्थपरक और परिणाममुखी दृष्टिकोण है जिसे चाणक्य नीति बार-बार रेखांकित करती है।