श्लोक १७-२१

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
व्यालाश्रयापि विकलापि सकण्टकापि
वक्रापि पङ्किलभवापि दुरासदापि ।
गन्धेन बन्धुरसि केतकि सर्वजन्ता
रेको गुणः खलु निहन्ति समस्तदोषान् ॥ १७-२१॥
साँप का आश्रय ग्रहण करना, विकलांग होना, कांटों जैसा होना, वक्र होना, कीचड़ से भरपूर होना, दुर्गंधित होना — ये सभी जाति के जीव हैं। केवल केतकी का एक गुण ही ऐसा है जो सभी दोषों को नष्ट करता है।

यह श्लोक जीवन में उपस्थित विभिन्न प्रकार के दोषों और बाधाओं का रूपक प्रस्तुत करता है। साँप का आश्रय लेना, विकलांगता, कांटे, टेढ़ापन, कीचड़ तथा दुर्गंध जैसे प्रतीकात्मक दोष सामाजिक, मानसिक और नैतिक जीवन में आने वाली विघ्न-संकटों को दर्शाते हैं। ये विविध दोष और बाधाएं व्यक्ति के विकास और प्रगति में बाधक बनती हैं। इसके विपरीत, केतकी फूल का एक गुण, जिसकी सुगंध सर्वत्र फैलती है, सर्व दोषों का नाश करने वाला प्रतीत होता है। केतकी का यह गुण शुद्धता, विशुद्धता और सकारात्मक प्रभाव का प्रतीक है, जो नकारात्मकताओं को समाप्त कर उन्नति की ओर ले जाता है।

वास्तविक जीवन में, यह विचार महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार के दोष और कमज़ोरियाँ होती हैं, जिनका सामना करना आवश्यक होता है। किन्तु एक विशिष्ट सकारात्मक गुण या तत्व, जैसे केतकी की सुगंध, समस्त नकारात्मक प्रभावों को दूर कर सकता है। यह गुण हो सकता है — सत्य, नैतिकता, विवेक, सहनशीलता, या सच्चा ज्ञान। इस दृष्टि से केतकी का उदाहरण यह दर्शाता है कि जीवन के दोषों के बीच भी एक ऐसी शक्ति होती है जो समस्त दोषों का विनाश कर शांति, विकास और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है।

शास्त्रीय संदर्भ में, दोषों का विनाश करने वाले गुणों का महत्त्व प्रायः नीति, धर्म और जीवनोपयोगी सिद्धांतों में प्रमुखता से वर्णित है। यहां केतकी का प्रयोग दर्शाता है कि एक सकारात्मक गुण का प्रभाव इतना व्यापक और निर्णायक हो सकता है कि वह अनेक प्रकार की बाधाओं और दोषों को समाप्त कर सकता है। अतः जीवन में सकारात्मकता, उच्च गुण, और नैतिकता का विकास करना अत्यंत आवश्यक होता है।

इस प्रकार, श्लोक एक दार्शनिक दृष्टिकोण प्रदान करता है कि विविध बाधाओं और दोषों के बावजूद, एक विशिष्ट गुण जीवन को सफल एवं दोषरहित बना सकता है। यह विचार नीति के मूल में निहित है—नकारात्मकता के मध्य भी सकारात्मकता की शक्ति सर्वश्रेष्ठ होती है।