श्लोक ११-०५

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
न दुर्जनः साधुदशामुपैति
बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः ।
आमूलसिक्तः पयसा घृतेन
न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति ॥ ॥११-०६॥
दुष्ट व्यक्ति अनेक प्रकार की शिक्षा मिलने के बावजूद भी अच्छे लोगों के समान व्यवहार नहीं करता। जैसे कि नींबू के पेड़ को यदि दूध या घी से पूरी जड़ तक भिगो दिया जाए, तब भी वह मीठा नहीं होता।

व्यक्ति का स्वभाव और आचार शिक्षा से प्रभावित होता है, लेकिन यदि मूल स्वभाव दुष्ट या नीच है तो वह अनेक प्रकार की शिक्षाएँ पाकर भी सद्गुणी नहीं बन पाता। यह वास्तविकता प्रकृति के नियमों की तरह अटल है। शिक्षा का प्रभाव तब तक सीमित रहता है जब तक वह व्यक्ति के मर्म यानी स्वभाव तक पहुँच नहीं पाती।

यहां एक गहरा दार्शनिक तथ्य सामने आता है कि बाहरी परिवर्तन संभव है, परन्तु यदि मूलाधार में बदलाव न हो तो कोई भी परिवर्तन सतत नहीं रहता। नींबू के पेड़ का उदाहरण अत्यंत सूक्ष्म और सारगर्भित है। नींबू का वृक्ष अपने फल में अम्लता को लिए हुए रहता है, फिर भी उसे दूध या घी की सिंचाई से मीठा बनाया नहीं जा सकता। इसी प्रकार, दुष्ट व्यक्ति के स्वभाव में व्याप्त कुटिलता, कपट, और अधर्म के गुण शिक्षा से मिटाए नहीं जा सकते।

शिक्षा का प्रभाव तभी स्थायी होता है जब वह व्यक्ति के चित्त और मनोवृत्ति को मूलतः परिवर्तित कर सके। यदि व्यक्ति का मन दुष्टता और पाप में स्थिर हो तो शिक्षाएँ केवल सतही सुधार के रूप में रह जाती हैं, जो बाहर से तो कुछ हद तक सहिष्णुता और शिष्टता दिखा सकती हैं, परन्तु आंतरिक स्तर पर बदलाव नहीं होता।

यह स्थिति जीवन के अनेक क्षेत्र में देखने को मिलती है जहाँ अनुशासन, नैतिक शिक्षा, और सत्कार्य करने की प्रेरणा दी जाती है, लेकिन अंततः व्यक्ति का स्वभाव और संस्कार नहीं बदलते। इसका कारण यह है कि स्वभाव परिवर्तन के लिए शिक्षा के साथ-साथ आत्मचिंतन, सतत अभ्यास, और सही वातावरण का होना आवश्यक है। केवल बाहरी शिक्षा या दंड प्रभावी नहीं हो पाता।

इसके अलावा, यह विचार हमें चेतावनी देता है कि दुष्ट लोगों में सुधार की संभावना कम होती है, और इसलिए सामाजिक या राजनैतिक दृष्टिकोण से दुष्टों का व्यवहार नियंत्रित करने के लिए कठोर उपाय आवश्यक हो जाते हैं। वे केवल सुधार की शिक्षा से सुधरते नहीं बल्कि अन्य नियंत्रक तत्वों की भी आवश्यकता होती है।

अंततः, इस दृष्टि से शिक्षा और स्वभाव के बीच गहरा संबंध है, परन्तु स्वभाव की जड़ में गहरी दुष्टता हो तो शिक्षा का परिणाम सीमित रहता है। यह स्वभाव के प्रकृति और शिक्षा के प्रभाव का एक सार्वभौमिक सत्य है, जो किसी भी सामाजिक, दार्शनिक, या नैतिक चर्चा में सशक्त तर्क प्रस्तुत करता है।