श्लोक ०१-१८

Kautilya Arthashastra by Acharya Chankya
विनीतो राजपुत्रः कृच्छ्रवृत्तिरसदृशे कर्मणि नियुक्तः पितरं अनुवर्तेत्, अन्यत्र प्राणाबाधकप्रकृतिकोपकपातकेभ्यः पुण्ये कर्मणि नियुक्तः पुरुषं अधिष्ठातारं याचेत् पुरुषाधिष्ठितश्च सविशेषं आदेशं अनुतिष्ठेत् अभिरूपं च कर्मफलं औपायनिकं च लाभं पितुरुपनाययेत् तथाऽप्यतुष्यन्तं अन्यस्मिन् पुत्रे दारेषु वा स्निह्यन्तं अरण्यायापृच्छेत बन्धवधभयाद् वा यः सामन्तो न्यायवृत्तिर्धार्मिकः सत्यवाग्ऽविसंवादकः प्रतिग्रहीता मानयिता चाभिपन्नानां तं आश्रयेत तत्रस्थः कोशदण्डसम्पन्नः प्रवीरपुरुषकन्यासम्बन्धं अटवीसम्बन्धं कृत्यपक्ष उपग्रहं च कुर्यात् एकचरः सुवर्णपाकमणिरागहेमरूप्यपण्याकरकर्मान्तान् आजीवेत् पाषण्डसङ्घद्रव्यं अश्रोत्रिय उपभोग्यं वा देवद्रव्यं आढ्यविधवाद्रव्यं वा गूढं अनुप्रविश्य सार्थयानपात्राणि च मदनरसयोगेनातिसन्धायापहरेत् पारग्रामिकं वा योगं आतिष्ठेत मातुः परिजन उपग्रहेण वा चेष्टेत कारुशिल्पिकुशीलवचिकित्सकवाग्जीवनपाषण्डच्छद्मभिर् वा नष्टरूपः तद्व्यञ्जनसखश्छिद्रेषु प्रविश्य राज्ञः शस्त्ररसाभ्यां प्रहृत्य ब्रूयात् - अहं असौ कुमारः, सहभोग्यं इदं राज्यं, एको नार्हति भोक्तुं, ये कामयन्ते मां भर्तुं तान् अहं द्विगुणेन भक्तवेतनेन उपस्थास्यामि इति इत्यपरुद्धवृत्तम् अपरुद्धं तु मुख्यपुत्रापसर्पाः प्रतिपाद्यानयेयुः माता वा प्रतिगृहीता त्यक्तं गूढपुरुषाः शस्त्ररसाभ्यां हन्युः अत्यक्तं तुल्यशीलाभिः स्त्रीभिः पानेन मृगयया वा प्रसञ्जयित्वा रात्रावुपगृह्यानयेयुः उपस्थितं च राज्येन मद्।ऊर्ध्वं इति सान्त्वयेत् एकस्थं अथ सम्रुन्ध्यात् पुत्रवांः तु प्रवासयेत् ॥१८॥
अनुशासित राजकुमार, कठिन जीवनयापन करते हुए असमान कार्य में नियुक्त होकर पिता का अनुसरण करे, सिवाय उन कार्यों के जो प्राणों को हानि पहुंचाने वाले, प्रकृति को क्रोधित करने वाले, या पापपूर्ण हों। पुण्य कार्य में नियुक्त होकर वह नियंता पुरुष से याचना करे। नियंता के अधीन रहकर विशेष आदेश का पालन करे। कार्य का सुंदर फल और उपहारस्वरूप लाभ पिता को समर्पित करे। फिर भी यदि पिता असंतुष्ट रहे, या किसी अन्य पुत्र या पत्नियों के प्रति स्नेह रखे, तो वह वन में जाने की अनुमति मांगे। या बंधन और मृत्यु के भय से जो सामंत न्यायप्रिय, धार्मिक, सत्यवादी, विश्वसनीय, शरणागतों को ग्रहण करने वाला और उनका सम्मान करने वाला हो, उसकी शरण ले। वहां रहकर, धन और दंड से संपन्न होकर, वीर पुरुषों की कन्याओं से संबंध, जंगली क्षेत्रों से संबंध, और कार्य पक्ष के समर्थन की व्यवस्था करे। अकेले रहकर, स्वर्ण, रत्न, रंग, सोना, चांदी, व्यापार, खनन, और कर्मशालाओं से जीविका चलाए। पाषंड समूह की संपत्ति, गैर-श्रोत्रिय की उपभोग्य संपत्ति, देव संपत्ति, या धनी विधवाओं की संपत्ति को गुप्त रूप से प्रवेश कर, व्यापारियों के वाहनों और पात्रों को कामोत्तेजक रस के योग से धोखा देकर हरण करे। या ग्रामीण योग का सहारा ले। या माता के परिजनों के समर्थन से कार्य करे। या कारीगर, शिल्पी, नीतिवान, चिकित्सक, वक्ता, जीविका कमाने वाले, या पाषंड के छद्म वेश में, खोई हुई पहचान के साथ, उस वेश के मित्र बनकर राजा के छिद्रों में प्रवेश कर, हथियार और विष से प्रहार कर कहे—मैं यह कुमार हूं, यह राज्य सहभोग्य है, एक अकेला इसे भोगने का हकदार नहीं, जो मुझे स्वामी बनाना चाहते हैं, उन्हें मैं दोगुने भोजन और वेतन से सेवा दूंगा। इस प्रकार वह अवरुद्ध जीवन व्यतीत करे। अवरुद्ध को मुख्य पुत्र या गुप्तचर पकड़कर लाएं, या माता उसे ग्रहण करे। त्यक्त को गुप्त पुरुष हथियार या विष से मारें। अत्यक्त को समान स्वभाव वाली स्त्रियों द्वारा शराब या शिकार से लुभाकर रात में पकड़कर लाएं। उपस्थित को राज्य के साथ मेरे बाद की स्थिति का आश्वासन देकर शांत करे। एक स्थान पर रहने वाले को रोक दे, और पुत्रों वाले को निर्वासित कर दे।

शासन और परिवार की गतिशीलता में संतुलन

शासन की कला समाज के विभिन्न तत्वों को एक सामंजस्यपूर्ण ढांचे में संयोजित करने का प्रयास है, जिसमें शक्ति, बुद्धि, और नैतिकता का संनाद आवश्यक है। यह केवल नियमों के प्रवर्तन या दंड के भय से नियंत्रण स्थापित करने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक गहन और सूक्ष्म कला है, जो सामाजिक, राजनैतिक, और सांस्कृतिक आयामों के बीच संतुलन बनाती है। इस संतुलन का एक केंद्रीय तत्व शासक और उसके परिवार, विशेष रूप से पुत्रों, के बीच का संबंध है। पुत्र शासक की शक्ति के प्रतीक और उत्तराधिकारी होने के साथ-साथ, अनुशासनहीन होने पर उसके लिए सबसे बड़ा खतरा भी बन सकते हैं। शासक का प्राथमिक दायित्व अपने राज्य को आंतरिक और बाह्य खतरों से सुरक्षित रखना है, लेकिन यह सुरक्षा सर्वप्रथम परिवार से शुरू होती है।

परिवार और शासक की विश्वसनीयता

परिवार शासक की शक्ति का आधार है। यह न केवल उसकी व्यक्तिगत पहचान को परिभाषित करता है, बल्कि राज्य की स्थिरता और निरंतरता का प्रतीक भी है। यदि शासक अपने परिवार को नियंत्रित या सुरक्षित नहीं रख सकता, तो प्रजा उसकी क्षमता पर संदेह कर सकती है। पुत्र, विशेष रूप से, शासक के लिए सबसे बड़ा समर्थन और सबसे बड़ा जोखिम दोनों हो सकते हैं। एक अनुशासित पुत्र अपने पिता के प्रति निष्ठावान रहता है, कठिन परिस्थितियों में भी उसके आदेशों का पालन करता है, और अपने कार्यों का फल उसे समर्पित करता है। यह निष्ठा न केवल परिवार की एकता को बनाए रखती है, बल्कि शासक की प्रजा के बीच विश्वसनीयता को भी सुदृढ़ करती है।

हालांकि, यदि पिता पुत्र के प्रयासों से संतुष्ट नहीं होता या अन्य पुत्रों अथवा पत्नियों के प्रति अधिक स्नेह दिखाता है, तो यह पुत्र के लिए एक नैतिक और राजनैतिक संकट उत्पन्न कर सकता है। ऐसी स्थिति में पुत्र के सामने कई विकल्प हो सकते हैं—वह या तो वन में एकांतवास की अनुमति मांग सकता है, जो एक तरह से सामाजिक और राजनैतिक जीवन से संन्यास का प्रतीक है, या वह किसी न्यायप्रिय और धार्मिक सामंत की शरण ले सकता है। यह निर्णय केवल व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि शासक और राज्य की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, यदि पुत्र सामंत की शरण लेता है, तो वह वहां धन और सैन्य शक्ति संचय कर सकता है, जिससे वह भविष्य में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सके।

पुत्रों का अनुशासन और कर्तव्य

पुत्रों का अनुशासन शासन की स्थिरता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। एक अनुशासित पुत्र को कठिन जीवनयापन और असमान कार्यों में भी अपने पिता का अनुसरण करना चाहिए, बशर्ते वे कार्य प्राणों को हानि पहुंचाने वाले, प्रजा के क्रोध को भड़काने वाले, या पापपूर्ण न हों। यह शर्त दर्शाती है कि पुत्र की निष्ठा अंधभक्ति नहीं, बल्कि नैतिकता और विवेक पर आधारित होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई पुत्र अपने पिता के किसी अनैतिक आदेश का पालन करने से इनकार करता है, तो यह उसकी नैतिक दृढ़ता का प्रमाण है, न कि विद्रोह का।

पुण्य कार्यों में नियुक्त होने पर पुत्र को एक नियंता की आवश्यकता होती है, जो उसके कार्यों की देखरेख करे। यह नियंता न केवल पुत्र को मार्गदर्शन देता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन सावधानीपूर्वक करे। पुत्र को अपने कार्यों का सुंदर फल और प्राप्त लाभ पिता को समर्पित करना चाहिए, जो उसकी निष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। यह प्रक्रिया न केवल परिवार के भीतर विश्वास को मजबूत करती है, बल्कि प्रजा को यह संदेश भी देती है कि शासक का उत्तराधिकारी सक्षम और समर्पित है।

रणनीति और गुप्तचरों की भूमिका

शासक को अपने पुत्रों पर नियंत्रण रखने के लिए रणनीतियों और गुप्तचरों का सहारा लेना पड़ता है। गुप्तचर न केवल पुत्रों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं, बल्कि उन्हें विद्रोह या अनैतिक कार्यों से रोकने के लिए विभिन्न उपाय अपनाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई पुत्र विद्रोह की सोच रखता है, तो गुप्तचर उसे शराब, शिकार, या स्त्रियों के प्रलोभन में फंसाकर नियंत्रित कर सकते हैं। यह रणनीति केवल दंडात्मक नहीं है; यह पुत्र को सही मार्ग पर लाने का एक प्रयास भी है।

यदि पुत्र पूरी तरह से विद्रोही हो जाता है, तो कठोर उपाय आवश्यक हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक त्यक्त पुत्र को गुप्त पुरुषों द्वारा हथियार या विष से समाप्त किया जा सकता है। यह उपाय क्रूर प्रतीत हो सकता है, लेकिन यह शासक की शक्ति और राज्य की स्थिरता को बनाए रखने के लिए आवश्यक हो सकता है। दूसरी ओर, यदि पुत्र को नियंत्रित किया जा सकता है, तो उसे भविष्य में राज्य प्राप्त करने का आश्वासन देकर शांत किया जा सकता है। यह रणनीति दर्शाती है कि शासक को अपने पुत्रों के साथ न केवल शक्ति, बल्कि बुद्धि और कूटनीति के साथ भी व्यवहार करना पड़ता है।

शासक और पुत्रों का सामाजिक अनुबंध

शासक और पुत्रों के बीच का संबंध एक जटिल सामाजिक अनुबंध की तरह है। पुत्र शासक के उत्तराधिकारी होने के साथ-साथ उसकी शक्ति के प्रतीक भी हैं। यदि वे निष्ठावान और अनुशासित हैं, तो वे राज्य की स्थिरता को बढ़ाते हैं। लेकिन यदि वे विद्रोही हैं, तो वे शासक के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकते हैं। इसीलिए, शासक को अपने पुत्रों को नियंत्रित करने के लिए ऐसी रणनीतियों का उपयोग करना पड़ता है, जो न केवल दंडात्मक हों, बल्कि शिक्षाप्रद और नैतिक भी हों।

यह अनुबंध केवल शासक और पुत्रों के बीच ही नहीं, बल्कि शासक और प्रजा के बीच भी महत्वपूर्ण है। प्रजा शासक से सुरक्षा और समृद्धि की अपेक्षा करती है, और बदले में उसे संसाधन और निष्ठा प्रदान करती है। यदि शासक अपने परिवार को नियंत्रित नहीं कर सकता, तो यह अनुबंध कमजोर पड़ सकता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई पुत्र पिता के खिलाफ विद्रोह करता है, तो यह न केवल परिवार की एकता को तोड़ता है, बल्कि प्रजा के बीच भी शासक की विश्वसनीयता को कम करता है।

उत्तराधिकार और राजवंश की निरंतरता

उत्तराधिकार शासन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। शासक का दायित्व है कि वह अपने उत्तराधिकारी को इस तरह तैयार करे कि वह राज्य को सुदृढ़ और स्थिर रख सके। यह प्रक्रिया केवल पुत्रों की शिक्षा तक सीमित नहीं है; इसमें उत्तराधिकार की योजना भी शामिल है। उदाहरण के लिए, यदि शासक के कई पुत्र हैं, तो उसे यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि वे एकसमान नियंत्रण में रहें, ताकि आपसी मतभेद राजवंश को कमजोर न करें। यदि एकमात्र पुत्र है, तो उसकी शिक्षा और अनुशासन पर विशेष ध्यान देना पड़ता है।

यदि पुत्र सक्षम और अनुशासित है, तो उसे सेनापति या युवराज के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। यह नियुक्ति न केवल पुत्र को राज्य संचालन का अनुभव देती है, बल्कि प्रजा के बीच उसकी स्वीकार्यता को भी बढ़ाती है। लेकिन यदि पुत्र अनुशासित नहीं है, तो उसे निर्वासित करना पड़ सकता है। यह निर्णय कठोर हो सकता है, लेकिन यह राजवंश की निरंतरता और राज्य की स्थिरता के लिए आवश्यक है।

शक्ति और बुद्धि का संतुलन

शासन की कला में यह समझ निहित है कि शक्ति का उपयोग केवल बल द्वारा नहीं, बल्कि बुद्धि, सूझबूझ, और नैतिकता के साथ किया जाना चाहिए। शासक का असली कौशल इस बात में है कि वह अपने परिवार और प्रजा को एक सामंजस्यपूर्ण ढांचे में बांध सके। यह प्रक्रिया न केवल शासक की बुद्धिमत्ता को दर्शाती है, बल्कि समाज की दीर्घकालिक स्थिरता को भी सुनिश्चित करती है। उदाहरण के लिए, यदि शासक अपने पुत्रों को धर्म और नैतिकता की शिक्षा देता है, तो वह न केवल अपने परिवार को बल्कि पूरे राज्य को स्थिर और समृद्ध बनाता है।

यह संतुलन केवल परिवार तक सीमित नहीं है; यह प्रजा और शत्रुओं के साथ संबंधों में भी महत्वपूर्ण है। शासक को अपने परिवार को नियंत्रित करने के साथ-साथ प्रजा की अपेक्षाओं को भी पूरा करना पड़ता है। यदि वह इसमें असफल रहता है, तो उसकी शक्ति और विश्वसनीयता कम हो सकती है। उदाहरण के लिए, यदि शासक अपने पुत्रों को अनुशासित नहीं रखता, तो प्रजा यह सोच सकती है कि वह अपने राज्य को भी नियंत्रित नहीं कर सकता।

आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता

शासन और परिवार की यह गतिशीलता आधुनिक संदर्भ में भी प्रासंगिक है। आज के शासक, चाहे वे राजनेता हों, कॉरपोरेट नेता हों, या सामाजिक संगठनों के प्रमुख, अपने उत्तराधिकारियों को अनुशासित और शिक्षित करने की आवश्यकता को समझते हैं। यदि उत्तराधिकारी अनुशासित नहीं हैं, तो वे संगठन या देश के लिए खतरा बन सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक कॉरपोरेट नेता अपने उत्तराधिकारी को प्रशिक्षित करने के लिए मेंटरशिप और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का उपयोग करता है, ताकि वह संगठन की मूल्य प्रणाली को बनाए रखे।

आधुनिक विश्व में, शासन की जटिलताएं बढ़ गई हैं। तकनीकी प्रगति और वैश्वीकरण ने शासकों के सामने नई चुनौतियां प्रस्तुत की हैं। आज का शासक न केवल अपने परिवार या संगठन को नियंत्रित करता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी स्थिति को बनाए रखता है। उदाहरण के लिए, एक देश का नेता अपने उत्तराधिकारी को न केवल आंतरिक शासन के लिए तैयार करता है, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और आर्थिक रणनीतियों के लिए भी प्रशिक्षित करता है।

क्या प्राचीन काल की ये रणनीतियां और संतुलन की समझ आधुनिक शासन प्रणालियों में उतनी ही प्रभावी हो सकती हैं? यह प्रश्न चिंतन का विषय है। शासन की कला में शक्ति और बुद्धि का संतुलन, और परिवार की भूमिका, समाज को एकजुट और स्थिर रखने में महत्वपूर्ण है। क्या हम इन प्राचीन सिद्धांतों को आज के जटिल वैश्विक परिदृश्य में अनुकूलित कर सकते हैं, ताकि समाज में संतुलन और स्थिरता बनी रहे? यह विचारणीय है कि क्या आधुनिक विश्व में, जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता और तकनीकी प्रगति ने सामाजिक संरचनाओं को पुनर्परिभाषित किया है, ये सिद्धांत अभी भी उतने ही प्रासंगिक हैं।